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Shoes and slippers पर कविता|Hindi poem on shoes and slippers

इस Blog में दी गयी कविता Shoes and slippers पर कविता|Hindi poem on shoes and slippers के माध्यम से कवि हमें उनके साथ जूते चपलों को लेकर के घटित हुयी एक हास्यजनक कहानी के बारे में बताना चाहते हैं कि जब वह झीमने ( खाना खाने ) गये थे तो किसी अन्य पुरुष द्वारा उनके जूते पहनकर जाने के पश्चात् उन्हें किस-किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा जो की बहुत ही हास्यजनक है। तो आइये इस मजेदार Blog को पढ़ना शुरू करते हैं। 


" एक व्यंग्य रचना आपकी सेवा म "

जूता-चपलां की महिमा भारी,

        कांईं पुरुष अर कांईं नारी। 

पड़्या-पड़्या बळ खावे भापड़ा,

        कुंण करै यांकी रुखाळी। 

ढेर म यांकी दसा मल जावे,

        जोड़्यां होवे नाळी-नाळी। 


अर्थ : कवि एक दिन जूते-चपलों को लेकर के उनके साथ घटित हुयी घटना को आप सभी के सामने बताते हुए कहते हैं कि जूते-चपलों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व है, चाहे पुरुष हो या महिला इनका होना हर इंसान के लिए महत्वपूर्ण है। 

कवि कहते हैं कि बेचारे हमारे जूते व चप्पल ऐसे ही रखे-रखे इधर-उधर मुड़ जाते हैं, हर इंसान कहीं पर भी इन्हें अकेला छोड़कर के चला जाता है कोई भी इनकी देखभाल नहीं करता। 

और कईं बार तो इनके ऊपर अन्य कईं जूते-चपलों का ढेर कर दिया जाता है जिससे इनकी हालत ओर भी अधिक ख़राब हो जाती है, तथा कईं बार तो इनकी जोड़ियाँ भी आपस में अलग-अलग हो जाती है जिससे बहुत ढूँढने के पश्चात् यह दोनों फिर से मिल पाते हैं और इनकी जोड़ी पूरी हो पाती है। 

Shoes and slippers पर कविता
Shoes and slippers पर कविता 

एक बार असी बणीं म्हांसूं,

        झींमबो पड़ग्यो सा भारी। 

ठाटा सूं झींमबा म रैहग्यो,

        जूतां की कुंण करे रुखाळी। 

ऊबाणां पगां की नौबत आगी,

        जूता फैरग्यो कोई मवाली। 


अर्थ : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि आप सभी को उस समय की व्यथा या घटना के बारे में बताना चाहते हैं जब वह किसी के कार्यक्रम में झीमने ( खाना खाने ) गये होते हैं। अतः उस घटना को बताते हुए कवि कहते हैं कि एक बार उनके साथ ऐसी घटना घटित हुयी जो बड़ी ही हास्यजनक है, जब वह झीमने गये थे तो उनके साथ कुछ ऐसा घटित हुआ जिससे की उनका झीमना उन पर ही भारी पड़ गया। 

तो आइये उस घटना के बारे में जानते हैं जब कवि झीमने के लिए गये होते हैं तो वह इतने आराम के साथ व इतने  चाव के साथ खाना खा रहे होते हैं, कि फिर वह अपने जूतों की ओर ध्यान देना ही भूल जाते हैं। 

जिसके कारण उनके नंगे पैर ही चलने की बारी आ जाती है, क्योंकि उनके जूतों को तो कोई ओर व्यक्ति पहनकर जा चूका था। 
   

छारुं मेर आच्छ्या हैरल्या म्हांनैं,

        सैंदी आड़ी नजर घुमाली। 

म्हारा मन म मारी उछाटां,

        दूसरा की पगां म वाळी। 

जूता सांटे चपलां फैरली,

        मरद का बदला म नारी। 


अर्थ : जब कवि को उनके जूते जगह पर दिखाई नहीं देते है तो वह बहुत परेशान हो जाते हैं और वह उन जूतों को इधर-उधर सभी जगहों पर ढूँढने लग जाते हैं, परन्तु गौर करके नजरें घुमा-घुमा करके देखने के बावजूद भी उन्हें जूते दिखाई नहीं देते हैं। 

तो उनके मन में यह परेशानी उत्पन्न हो जाती है कि अब नंगे पैर घर कैसे जाया जाए, तब उनके दिमाग में एक उपाय आता है और वह किसी दूसरे व्यक्ति की चपलों को पहन लेते हैं। 

तब वह कहते हैं कि मैंनें उस समय जूतों के चक्कर में किसी ओर की चपलें पहन ली, जो कि आदमी के बदले में एक औरत या नारी थी। 
     

अतनां मं वांको धणीं आग्यो,

        फाचै सूं बोल्यो राम राम। 

शरम की मारी मरग्यो म्हूं तो,

        बंणग्यो नपट अनजांण। 

झट खोली चोरी की चपलां,

        मूंडा प लायो मुसकान। 


अर्थ : कवि को चपलें पहने हुए कुछ ही क्षण हुए होते हैं कि इतने में कहीं से उन चपलों का मालिक वहाँ आ जाता है, और कवि के पीछे से बोलता है कि राम राम। 

तब कवि को इतनी अधिक शर्म आती है कि वह शर्म के मारे पीछे भी नहीं मुड़ पाते हैं, तथा कुछ समय तक तो वह जान बूझकर के अंजान बने रहते हैं। 

फिर थोड़ी ही देर बाद वह उन चोरी की चपलों को खोल देते हैं, और शर्म के मारे अपने मुख पर एक बड़ी सी हँसी ले आते हैं। 
     

थांकी फैरबा म आगी बाळी,

        संभाळो चपलां श्रीमान। 

घणीं निठां सूं म्हांनैं झेंप मटाई,

        आच्छी करी रे भगवान। 

आच्छ्यो रैहतो ऊबांणों आ जातो,

        पांच मनख्यां म गम जाती आंण। 


अर्थ : और चपलें खोलने के पश्चात् कवि उस व्यक्ति से कहते हैं कि माफ कीजिएगा गलती से आपकी चपलें मेरे पहनने में आ गयी, और कहते हैं कि यह लो श्रीमान आपकी चपलें। 

उस समय कवि को खुद पर इतनी अधिक शर्म आती है कि उस दिन उनके मन से वह बात निकल ही नहीं पा रही थी। फिर कुछ दिनों के बाद वह बड़ी मुश्किलों से अपनी उस शर्म को मिटा पाते हैं, और कहते हैं कि है भगवान तूने यह मेरे साथ क्या किया, मुझे किस परिस्थिति में डाल दिया। 

और कवि कहते हैं कि उस व्यक्ति की चपलें पहनने से तो यही अच्छा होता कि मैं नंगे पैर ही घर आ जाता, कम से कम मुझे पाँच व्यक्तियों के समक्ष शर्मिंदगी तो महसूस नहीं होती। 
      

आच्छी करी रे करतार म्हारा,

        बगड़ जाती भाया सारी शान। 

भगवान का मंदर जावां अब,

        दरसण म लागे कौनें ध्यान। 

जूता-चपलां की चन्ता सतावे,

        फैर जावे कोई भलो इंसान ।। 


अर्थ : कवि बाद में उस पल को याद करते हुए कहते हैं कि है भगवान आपने उस समय मेरे साथ भारी समस्या बनायी थी, जिसमें मेरी सारी शान और मेरा मान बिगड़ते-बिगड़ते रह गया था। 

उस दिन के बाद से तो कवि जब भी भगवान के मंदिर जाते तो, उनका भगवान के दर्शन करने में भी कोई ध्यान नहीं लगता। 

और उन्हें हर पल यही चिंता सताती रहती कि कहीं कोई उनके जूते-चपलों को पहनकर के ना चला जाए।    


👀   Joota-Chaplan Ki Mahima Bhaari,

        Kaai Purush Ar Kaai Nari . 

Padya-Padya Bal Khave Bhapda,

        Kun Kare Yanki Rukhali . 

Dher Me Yanki Dasa Mal Jave,

        Jodya Hove Nali-Nali . 

Ek Baar Asi Bani Mhasoo,

        Jheembo Padgyo Sa Bhaari . 

Thata Soo Jheemba Me Raihagyo,

        Joota Ki Kun Kare Rukhali . 

Oobana Paga Ki Noubat Aagi,

        Joota Fairgyo Koi Mawali . 

Chharu Mer Aachchhya Hairlya Mhanai,

        Saindi Aadi Najar Ghumali . 

Mhara Man Ma Maari Uchhata,

        Doosra Ki Paga Me Waali . 

Joota Saante Chapla Fairli,

        Marad Ka Badla Ma Nari . 

Atna Me Waanko Dhani Aagyo,

        Faachai Soo Bolyo Ram Ram . 

Sharam Ki Maari Margyo Mhoo To,

        Bangyo Napat Anjan . 

Jhat Kholi Chori Ki Chapla,

        Moonda Pe Layo Muskan . 

Thaaki Fairba Me Aagi Baali,

        Sambhalo Chapla Shreeman . 

Ghani Nitha Soo Mhanai Jhep Matai,

        Aachchhi Kari Re Bhagwan . 

Aachchhyo Raihato Oobano Aa Jato,

        Paanch Mankhya Me Gum Jati Aan . 

Aachchhi Kari Re Kartar Mhara,

        Bagad Jati Bhaya Sari Shaan . 

Bhagwan Ka Mandar Jawa Ab,

        Darsan Me Laage Koune Dhyan . 

Joota-Chapla Ki Chanta Satave,

        Fair Jave Koi Bhalo Insan ..     

हमें आशा है कि आपको ऊपर दी गयी कविता को पढ़कर के बहुत मजा आया होगा। अतः इस कविता से यही निष्कर्ष निकलता है कि यदि किसी कारणवश कहीं पर हमारे जूते या चप्पल चोरी भी हो जाते हैं तो हमें किसी ओर के जूते या चप्पल पहनकर घर आने के बजाय वहाँ से नंगे पैर ही घर लौटकर आ जाना चाहिए क्योंकि हमारे इस तरह के कार्य से एक तो हमें शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है और दूसरा यह कि वह व्यक्ति भी फिर हमारी तरह ही अपने जूते-चपलों को लेकर के परेशान होएगा।                                                          

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