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Ganesh ji ki katha in hindi|गणेश जी के जन्म से लेकर उनके एकदन्त कहलाये जाने तक की कथा

जय श्री गणेशाय नमः 

रूपरेखा  :-

1. भगवान गणेश जी का जन्म कैसे हुआ 

2. भगवान श्री गणेश को बुद्धि के दाता क्यों कहा जाता है 

3. गणेश चतुर्थी पर हम 10 दिन के लिए गणेश जी की प्रतिमा क्यों स्थापित करते हैं/गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है                                                            

4. गणेश जी के 108 नाम श्लोक तथा अर्थ के साथ 

5. भगवान गणेश को एकदन्त क्यों कहा जाता है 


1. भगवान गणेश जी का जन्म कैसे हुआ | How to birth Lord Ganesha 

शिव पुराण के अनुसार जब माता पार्वती कैलाश पर्वत पर रहती थी तो वहाँ पर कोई भी देवी-देवता और शिव जी किसी भी समय आते-जाते रहते थे। इस कारण से जब वह स्नान करने के लिये जाती तो वह स्नान घर के बाहर किसी एक शिव गण पहरी को पहरा ( रखवाली ) देने की लिये खड़ा करके जाती थी परन्तु वह पहरी शिव भक्त होते हैं तो वह शिव जी को अंदर आने से मना नहीं कर पाते हैं इस समस्या के चलते माता पार्वती की सखियों ( दासियों ) ने उन्हें सुझाव दिया कि वह ऐसे पहरी ( रखवाली करने वाला ) को खड़ा करे जो सिर्फ उनकी बात माने भोलेनाथ की नहीं।

इस कार्य हेतु जब वह नहाने जाती है तो वह अपने शरीर के उबटन ( हल्दी का लेप ) को निकालकर एक बालक का निर्माण करती है और फिर उस उबटन के बालक में प्राण डालकर उसे जीवित कर देती है और उससे कहती है कि आज से तुम मेरे पुत्र हो। तुम्हे स्नानघर के बाहर पहरा देना है और तुम्हे किसी को भी अंदर नहीं आने देना है चाहे कुछ भी हो जाये। फिर उस बालक को आदेश देकर माँ पार्वती स्नान करने के लिये स्नान घर में चली जाती है, कुछ समय पश्चात् वहाँ पर कुछ देवता आ जाते हैं। 

देवता पारवती जी के भवन में जाने लगते हैं तब वह बालक उन्हें अन्दर नहीं जाने देता है इतने में कुछ समय बाद वहाँ भोलेनाथ भी आ जाते हैं और वह पारवती भवन के अंदर जाने लगते हैं लेकिन वह बालक उन्हें भी अन्दर नहीं जाने देता है और कहता है कि माँ पार्वती ने उन्हें अन्दर आने से मना किया है। तो भोलेशंकर उस बालक से कहते हैं कि मैं उनका पति हूँ, मैं तो अंदर जा सकता हूँ। 

बहुत समय तक समझाने के बाद भी वह बालक भोलेशंकर को अन्दर नहीं आने देता है तो भोलेबाबा को क्रोध ( गुस्सा ) आ जाता है और फिर उन दोनों में भयंकर युद्ध होने लग जाता है और अन्त में जब भोलेबाबा को अत्यधिक क्रोध आ जाता है तो शिव जी अपने त्रिशूल से उस बालक का सर ( सिर ) काट देते हैं और पारवती भवन के अंदर चले जाते हैं। 

तो पारवती उन्हें अन्दर देखकर उनसे पूछती है कि आप अन्दर कैसे आये आपको बाहर किसी ने रोका नहीं, तो भोलेबाबा उनसे कहते हैं कि बाहर एक बालक ने रोका था तो मैंने उसका सर धड़ से अलग कर दिया। यह सब सुनकर पारवती अत्यधिक क्रोधित हो जाती है। 

वह शंकर जी से कहती है कि वह तो मेरा पुत्र था आपने ऐसे कैसे उसे मार दिया। अत्यधिक क्रोधित होने के कारन माँ पारवती अपनी समस्त शक्तियों को जाग्रत कर लेती है और पूरे संसार को खत्म करने के बारे में कहती है इससे चारों ओर प्रलय आने लग जाता है तो सभी देवगण माँ गौरी को मनाने की कोशिश करते हैं परन्तु उनका गुस्सा शांत नहीं होता तो इतने में देवर्षी नारद कहते हैं कि यदि हम माँ गौरी की वन्दना करें तो उनका गुस्सा शांत हो जायेगा। इतने में सब उनकी वंदना करने लग जाते हैं कुछ समय बाद गौरी मैया का गुस्सा तो शांत हो जाता है परन्तु वह सभी के सामने यह शर्त रखती हैं कि मैं इस प्रलय को तभी रोकूंगी जब मेरे पुत्र को दौबारा जीवित किया जायेगा।

तो सभी देवता जाकर यह बात शंकर जी से कहते हैं तो शंकर जी उनसे कहते हैं कि तुम सब उत्तर दिशा की ओर जाओ और वहाँ जो भी ऐसी माता मिले जो अपने पुत्र की ओर पीठ करके सोई हुई है, उसके पुत्र का सिर काटकर गणेश के धड़ पर लगा दो। सभी देवगण उत्तर दिशा की ओर जाते हैं तो वहाँ उन्हें सबसे पहले एक हथिनी दिखाई देती है जो अपने पुत्र की ओर पीठ करके सोई हुई होती है तो देवता उस हथिनी के बच्चे का सिर काट लेते हैं और लाकर गणपति के धड़ पर लगा देते हैं और फिर शंकर जी पुनः उसमें प्राण डाल देते हैं। इस तरह से पुनः पुत्र को जीवित देखकर माता पारवती खुश हो जाती है, उनके गज ( हाथी ) का सिर लगाया जाता है इस कारण से उनका नया नाम गजानन पड़ जाता है। 

गणपति जी का जन्म भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। इस कारण भोलेबाबा उन्हें आशीर्वाद देते हैं कि आपका जन्म भाद्रपद चतुर्थी को शुभ चंद्रोदय में हुआ है। अतः इस दिन के दिन जो भी स्त्री-पुरुष आपका व्रत रखेगा उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।  


Ganesh ji ki katha in hindi
Ganesh ji ki katha








2. भगवान श्री गणेश को बुद्धि के दाता क्यों कहा जाता है | Why Lord Ganesha is called the giver of wisdom  

एक बार की बात है जब बाल गणेश बहुत सारे लड्डू खाकर सोए हुए रहते हैं तब कार्तिकेय कहीं से आकर गणेश  जी से कहते हैं कि आज हम झरने पर स्नान करने के लिए चलते हैं तो गणपति कार्तिकेय से कहते हैं कि कार्तिकेय आज स्नान करने के लिये तुम ही जाओ आज मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकता क्योंकि आज मैंने अत्यधिक भोजन कर लिया है और अब मुझे नीन्द आ रही है। तो कार्तिकेय उनसे कहते हैं कि आप बहुत खा खाकर आलसी हो गये हैं तब गणपति कार्तिक से कहते हैं कि यह सब बेकार की बात है मैं आज भी तुमसे अधिक चुस्त और फुर्तिला हूँ। 

और इस बात को लेकर दोनों के बीच झगड़ा होने लग जाता है तभी वहाँ पर देवर्षी नारद प्रकट होते हैं और कहते हैं कि आप दोनों में से कौन अत्यधिक सक्षम ( श्रेष्ठ ) हैं इस बात का निर्णय तो एक स्पर्धा ( Competition ) से ही हो सकता है। तब दोनों बालक नारद जी से स्पर्धा के लिये पूछते हैं तो नारद मुनि उन्हें बताते हैं कि आप दोनों में से जो भी पूरे विश्व के तीन चक्कर लगाकर पहले वापस आयेगा और अपने माता-पिता को प्रणाम करेगा। वही विजेता होगा तथा वही दोनों में से अधिक श्रेष्ठ होगा। 

दोनों ही बालक चुनौती स्वीकार कर लेते हैं तब कार्तिक तो तुरन्त विश्व के चक्कर लगाने के लिये अपनी सवारी मोर पर सवार होकर निकल जाते हैं परन्तु गनेश जी नहीं निकलते हैं वह सोचते हैं कि मेरी सवारी तो एक मूषक ( चूहा ) है जो बहुत धीरे दौड़ता है और मेरा शरीर भी भारी है तो ऐसी स्तिथि में मैं विजयी कैसे होऊँगा तभी उनके दिमाग में एक उपाय आता है और वह अपने माता-पिता ( भगवान शिव और माता पार्वती ) के तीन चक्कर लगाकर उनके सामने खड़े हो जाते हैं और कहते हैं कि मुनिवर मैंने पूरे विश्व के तीन चक्कर लगा लिए हैं।

तब नारद मुनि उनसे कहते हैं कि आप तो यहाँ से गये ही नहीं फिर आपने विश्व के चक्कर कब लगा लिए। तब विनायक ने देवर्षी से कहा कि मुनिवर आप तो सब जानते हैं कि मेरे माता-पिता में पूरा विश्व समाया हुआ है और मैंने उनका चक्कर लगा लिया तो लग गया पूरे विश्व का चक्कर। तब भोलेशंकर, माँ पारवती और समस्त देवगण उनसे अत्यधिक प्रसन्न होते हैं तभी वहाँ पर कार्तिक विश्व के चक्कर लगाकर आ जाते हैं और कहते हैं कि गनेश आप चक्कर लगाने नहीं गये। 

देवर्षि कार्तिक से कहते हैं कि विनायक ने आप से पहले ही विश्व के तीन चक्कर लगा लिए हैं और यह विजयी घोषित भी हो चुके हैं तब kartik कहता है कि मैं नहीं मानता आपने जरूर कुछ चालाकी की है। तो नारद जी कहते हैं कि चालाकी नहीं बुद्धिमता से विनायक विजयी हुए हैं। तभी Kartik विनायक से पूछता है कि अगर आपने सचमुच दुनिया के चक्कर लगा लिए हैं तो बताइये आपने क्या-क्या देखा।  

तो गजानन कहते हैं कि सात महाद्विप, चारों महासागर, हिमालय पर्वत की सबसे ऊँची चोटी और विश्व की सबसे लम्बी नदी को मैंने देखा। तब भोलेबाबा ने गनेश से कहा कि तुम बुद्धि में सर्वश्रेष्ठ हो और जो भी भक्तगण तुम्हारी सच्चे मन से पूजा, आराधना करेगा उस पर तुम्हारी कृपा दृष्टि सदैव बनी रहेगी। इस कारण से भगवान श्री गणेश को बुद्धि के दाता कहा जाता है।  

3. गणेश चतुर्थी पर हम 10 दिन के लिए गणेश जी की प्रतिमा क्यों स्थापित करते हैं | Why we install Ganesha idol/statue for 10 days on Ganesh chaturthi 
             अथवा ( Or )
गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है | Why is Ganesh chaturthi celebrated 

हम जो 10 दिन के लिए गणपति बाप्पा की मूर्ति की स्थापना करते हैं या गनेश चतुर्थी मनाते हैं इसके पीछे एक पौराणिक कहानी छिपी हुई है। यह कथा महर्षी वेदव्यास से जुड़ी हुई है जो महाभारत के रचयिता ( Author ) थे। यूँ तो गनेश उत्सव मनाने की परम्परा सदियों पहले से शुरू हो चुकी है भारत में गनेश उत्सव की शुरुआत सबसे पहले महाराष्ट्र से हुई। भारत में जब पेशवाओं का शासन था तब से वहाँ पर Ganesh Utsav मनाया जा रहा है परन्तु जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पेशवाओं के राज्यों पर अधिकार जमा लिया।

तब से वहाँ इस त्यौहार ( Festival ) की रंगत फिकी पड़ना शुरू हो गयी। लेकिन यह परम्परा कभी बन्ध नहीं हुई। अंग्रेजों के कारण हिन्दूओं में अपने ही धर्म के प्रति कड़वाहट पैदा होने लग गयी। तब महान क्रन्तिकारी नेता बालगंगाधर तिलक ने सोचा कि हिन्दू धर्म को पुनः कैसे संगठित किया जाये। उन्होंने सोचा कि श्री गणेश ही एक ऐसे देवता है जो समाज के सभी स्तरों में पूजनीय है अतः उन्होंने हिन्दूओं को एकत्र करने के इस उद्देश्य से पुणे में सन 1893 में सार्वजनिक गनेश उत्सव की स्थापना की। 

तभी से यह तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी तक Ganesh utsav मनाया जायेगा। जिससे समाज में एकता और सदभावना बनी रहे तभी से पूरे भारत में सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया जा रहा है। Ganesh Chaturthi पर 10 दिन के लिए विग्नेश की मूर्ति स्थापित की जाती है और 11वे दिन उस मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है इसके पीछे एक कहानी है। द्वापर युग में महाभारत काल के समय जब महाभारत समाप्त हुई तो वेदव्यास जी पूरी महाभारत को लिखना चाहते थे परन्तु वह उसे लिखने में, उसे साकार रूप देने में असमर्थ थे। 

तब उन्होंने देवगणों से पूछा कि इसे किसके द्वारा लिखवाया जाये तभी ब्रह्मा जी ने वेदव्यास से कहा कि इसे लिखने का कार्य केवल एक ही देवता कर सकता है और वह है गजानन। क्योंकि वह अत्यधिक बुद्धिमान है और वही विद्द्या के देवता भी हैं तब वेदव्यास ने गजानन से पूछा तो वह महाभारत लिखने के लिए राजी हो गए लेकिन महाभारत लिखने की एक शर्त थी कि उसे लिखते समय बीच में रुकना मना था। 

इस कारण से विग्नेश ने लगातार बिना रुके 10 दिनों तक Mahabharat लिखी थी। वेदव्यास जी विग्नेश को श्लोक बताते गये और वह लिखते गये, 10 दिनों तक विनायक के लिए पानी पीना भी वर्जित था क्योंकि उन्हें पानी पीने का भी समय नहीं मिलता। लम्बोदर 1 पल ( 1 Second ) के लिए भी बीच में नहीं रुके तो उस स्तिथि में वह पानी कैसे पीते, जब महर्षि वेद्व्यास जी ने देखा कि लम्बोदर को थकान हो रही है और उनके शरीर से थोड़ा बहुत पसीना भी बह रहा है तो उन्होंने तुरंत मिटटी लाकर उसका लेप बनाकर लम्बोदर को लगा दिया। 

जिससे उनके शरीर का तापमान न बढ़े, जैसे-जैसे समय गुजरता गया तो जो विग्नेश के शरीर पर मिटटी लगायी गयी थी वह सूखने लगी और मिटटी के सूखने के कारन एकदन्त के शरीर में अकड़न आ गयी। जिसके कारन उनका एक ओर नया नाम पड़ा पार्थिव गणेश। इसलिए हम उनकी पार्थिव मूर्ति ( मिटटी से बनी मूर्ति ) की स्थापना करते हैं। 10 दिनों तक Mahabharat लिखने का कार्य चला। 

जैसे-जैसे लिखने का कार्य आगे बढ़ा तो Vedvyas ji ने देखा कि लम्बोदर को अत्यधिक थकान हो रही है और उनके शरीर का तापमान बढ़ता ही जा रहा है तो महाभारत लिखने का कार्य पूर्ण होने पर उन्होंने विग्नेश की पूजा करके उन्हें पवित्र जल के अन्दर बैठा दिया। ताकि उनके शरीर की सारी मिटटी निकल जाये, जिसके रूप में हम उनका विसर्जन करते हैं। इस कारन से वेदव्यास जी के साथ-साथ गनपती को भी महाभाऱत के रचयिता कहा जाता है क्योंकि उन्होंने उसे लिखा था। 


Ganesh ji ki katha
Ganesh ji ki katha


Quotes on Ganesh ji | गणेश चतुर्थी पर कविता 

गणेश चतुर्थी के लिए विशेष कविता/कुछ पंक्तियाँ ( Special poem/few lines for Ganesh Chaturthi ) 

जय श्री गणेशाय नमः 

गणेश चतुर्थी का पावन पर्व की घणीं-घणीं बधाई 

सा ---------------

बाळक बंदड़ा आओ,

             गजानन्द महाराज । 

मां गोरां का लाडला,

            थै बुद्धि का दातार । 

शंकर जी का प्यारा,

            थै रिद्ध सिद्ध का भरतार । 

अर्थ :- आप सभी को गणेश चतुर्थी के पावन पर्व की बहुत-बहुत बधाई। है गणेश जी महाराज आप हमारे घर में बालक बनके आओ। आप पार्वती माता के प्यारे और बुद्धि के दाता हो, आप शिव जी के प्यारे और रिद्धि सिद्धि के स्वामी हो। 

दूंद दूंदाल्ला सूंड सूंडाल्ला,

            गज को माथो थांकेेेै तात । 

कार्तिकेय जी का अग्रज,

            घणां लड़ावा थांका लाड ।  

ऊंदरा की थै करो सवारी,

            सारो सा सबका काज ।

अर्थ :- है गणपति आपके लम्बे दांत और लम्बी सूंड है तथा आपके हाथी का सिर है। कार्तिकेय आपका बड़ा भाई है तथा आपको सभी प्यार करते हैं। है गणपति आप चूहे की सवारी करो और सभी के कार्य पूरे करो। 

घर घर म आप पधारो,

            रिद्ध-सिद्ध न लाओ लार ।

सबसूं फैहली थांनै पूजां,

            अन धन का भरो भंडार । 

विध्या सूं थै पूरण कर दो,

           गिरजां का गणेश लाल ।

अर्थ :- है गणपति आप हर घर में पधारो और रिद्धि-सिद्धि को साथ में लाओ। है विघ्नहरता सभी लोग सबसे पहले आपको पूजते हैं तो आप सभी के घर को अन्न धन से भर दो। है गिरजा के गनेश आप सभी बच्चों को विध्या से पूर्णतः पूरा कर दो। 

किरपा करो विघन हरण,

            भगतां की सुणों पुकार ।

महामारी समेटो लंबोदर,

            कोराणां को करो संहार ।

लडुवां को भोग लगावां,

           सगळा भगत देवे बधाई ।

शंभू सुत राखो सबकी लाज ।।

👉 जय हो गजानन महाराज की 👈 

अर्थ :- है विघ्नहरता आप सभी पर अपनी कृपा बरसाओ और सभी भक्तों की पुकार सुनो। है लम्बोदर अब आप इस महामारी को खत्म कर दो और कोरोना को समाप्त कर दो। सभी भक्त आपको बधाइयाँ देते हैं और आपको लड्डुओं का भोग लगाते हैं, है शिव पुत्र सभी की लाज रख लो।              


गणेश जी मंत्र ( Lord Ganesha Mantra )  

ॐ गं गणपतये नमो नमः ( Om Gan Ganpataye Namo Namah )

श्री सिद्धिविनायक नमो नमः ( Shri Siddhi Vinayak Namo Namah )

अष्टविनायक नमो नमः ( Ashthavinayak Namo Namah )

गणपति बाप्पा मोरया।। ( Ganpati Bappa Morya )

4. गणेश जी के 108 नाम श्लोक तथा अर्थ के साथ | 108 Names of Ganesha with shloka and meaning  

  1. ॐ विनाशकाय नमः ( जिसे किसी नायक के मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है )
  2. ॐ विघ्नराजाय नमः ( सब बाधाओं का निवारण करने वाले )
  3. ॐ गौरीपुत्राय नमः ( जो माँ गौरी की संतान है )
  4. ॐ गणेश्वराय नमः ( जो गणों के ईश्वर है )
  5. ॐ स्कन्दाग्रजाय नमः ( जो भगवान कार्तिकेय के बढ़े भाई हैं )
  6. ॐ अव्ययाय नमः ( जो अविनाशी है )
  7. ॐ पूताय नमः ( जो पवित्र है )
  8. ॐ दक्षाध्यक्षाय नमः ( जो महान कौशल के अधिकारी है )
  9. ॐ द्विजप्रियाय नमः ( जो द्विजों से प्रेम करते हैं )
  10. ॐ अग्निगर्भच्छिदे नमः ( जिन्होंने अग्नि का घमंड तोड़ा )
  11. ॐ इन्द्रश्रीप्रदाय नमः ( जिन्होंने इन्द्र की सम्पत्ति का पुनः स्थापन किया )
  12. ॐ वालीबलप्रदाय नमः ( जो वाणी का बल प्रदान करते हैं )
  13. ॐ सर्वसिद्धिप्रदायकाय नमः ( जो सब सिद्धियों के दाता हैं )
  14. ॐ शर्वतनयाय नमः ( जो भगवान शिव के पुत्र हैं ) 
  15. ॐ गौरीतनुजाय नमः ( जो माँ गौरी की संतान है )
  16. ॐ शर्वरीप्रियाय नमः ( जो माता पार्वती के प्रिय हैं )
  17. ॐ सर्वात्मकाय नमः ( सृष्टि के रक्षक )
  18. ॐ सृष्टिकत्रे नमः ( जिन्होंने इस ब्रह्माण्ड की रचना की )
  19. ॐ देवानिकार्चिताय नमः  ( जो प्रकाशमान है और सब के आराध्य है )
  20. ॐ शिवाय नमः ( जो शुभ है )
  21. ॐ शुद्धाय नमः ( जो पवित्र हैं )
  22. ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ( बुद्धि के प्रदाता )
  23. ॐ शान्ताय नमः ( जो शांत है )
  24. ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ( जो कुंवारे हैं )
  25. ॐ गजाननाय नमः ( जिनका मुख गज के मुख के समान है )
  26. ॐ द्वैमातुराय नमः ( जिनकी दो माताएं हैं )
  27. ॐ मुनिस्तुत्याय नमः ( जिनकी स्तुति ऋषि मुनि भी करते हैं )
  28. ॐ भक्तविघ्नविनाशनाय नमः ( भक्तों के कष्ट दूर करने वाले )
  29. ॐ एकदंताय नमः ( एक दांत वाले भगवान )
  30. ॐ चतुर्बाहवे नमः ( जिनकी चार भुजाएं हैं )
  31. ॐ शक्तिसंयुताय नमः ( जी शक्तियों से परिपूर्ण हैं )
  32. ॐ चतुराय नमः ( जिनकी चतुराई को हम नमन करते हैं )
  33. ॐ लम्बोदराय नमः ( बढ़े पेट वाले )
  34. ॐ शूर्पकर्णाय नमः ( सूप के समान कानवाले ) 
  35. ॐ हेरम्बाय नमः ( माता के प्रिय पुत्र )
  36. ॐ ब्रह्मवित्तमाय नमः ( जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सबसे महान है )
  37. ॐ कालाय नमः ( प्रारब्ध के स्वामी )
  38. ॐ ग्रहपतये नमः ( सभी ग्रहों तथा आकाश गंगाओं के भगवान )
  39. ॐ कामीने नमः ( जो प्रेम हैं )
  40. ॐ सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः ( जिनकी आँखे सूरज, चाँद तथा अग्नि हैं )
  41. ॐ सोमपाशांकुशथराय नमः ( जिन्होंने पाश और अंकुश पकड़ रखा है ) 
  42. ॐ छन्दाय नमः ( जो साहित्य का प्रतीक हैं )
  43. ॐ गुणातीताय नमः ( जो गुणों में श्रेष्ठ हैं )
  44. ॐ नीरंजनाय नमः ( जो कलंक रहित हैं )
  45. ॐ अकल्मषाय नमः ( जो अशुद्धता से परे हैं )
  46. ॐ स्वयंसिद्धार्चितपदाय नमः ( जो आत्म सम्पूर्ण और सही हैं )
  47. ॐ बीजापुरकराय नमः ( जिनके हाथ सदैव दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं )
  48. ॐ अव्यक्ताय नमः ( जो रहस्यमयी है )
  49. ॐ गदिने नमः ( जिनका शस्त्र गदा है )
  50. ॐ वरदाय नमः ( वरदान देने वाले )
  51. ॐ शाश्वताय नमः ( जो अनन्त तथा अपरिवर्तनीय है )
  52. ॐ कृतिने नमः ( जो कुशलता में निपुर्ण हैं )
  53. ॐ विद्वत्प्रियाय नमः ( जो बुद्धि, ज्ञान से प्यार करते हैं )
  54. ॐ वीतभयाय नमः ( जो भय से परे हैं )
  55. ॐ चक्रिणे नमः ( जिनका शस्त्र चक्र है )
  56. ॐ इक्षुचापधृते नमः ( जो गन्ने का धनुष धारण करते हैं ) 
  57. ॐ अब्जोत्पलकराय नमः ( जिनके हाथ कमल समान हैं )
  58. ॐ श्रीदाय नमः ( अत्याधिक धन अर्पण करने वाले )
  59. ॐ श्रींहतवे नमः ( जो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का कारण हैं )
  60. ॐ स्तुतिहर्षिताय नमः ( जो स्तुति से प्रसन्न हो जाते हैं )
  61. ॐ कालाद्रिते नमः ( जो चन्द्रमा को प्रसन्नता से धारण करते हैं )
  62. ॐ जटिने नमः ( जिनके पास जटा है )
  63. ॐ चन्द्रचूड़ाय नमः ( जिन्होंने चन्द्रमा को अलंकार की तरह धारण किया है )
  64. ॐ अमरेश्वराय नमः ( जो अविनाशी हैं )
  65. ॐ नागयन्तोपवीतने नमः ( जिन्होंने नागों के देवता को यज्ञोपवीत की तरह धारण किया है )
  66. ॐ श्रीकांताय नमः ( जो प्रिय और प्यारे हैं ) 
  67. ॐ रामार्चितपदाय नमः ( जिनके पैर सुन्दर हैं )
  68. ॐ वृतिने नमः ( जो हर चीज में माहिर हैं )
  69. ॐ स्थूलकान्ताय नमः ( जो सौन्दर्यवान और गजमुख हैं )
  70. ॐ त्रयीकत्रे नमः ( जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा पूजे जाते हैं )
  71. ॐ संघोषप्रियाय नमः ( जिन्हें सामवेद की ध्वनि प्रिय है )
  72. ॐ पुरुषोत्तमाय नमः ( सभी जीवित प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ )
  73. ॐ स्थूलतुण्डाय नमः ( जिनके पास मोटी, अप्रत्याशित सूंड है ) 
  74. ॐ अग्रजन्याय नमः ( जो सबसे पहले जन्में हैं )
  75. ॐ ग्रामण्ये नमः ( जो सभी ग्रामों में पूजित हैं )
  76. ॐ गणपाय नमः ( जो सभी गणों में सर्वश्रेष्ठ हैं )
  77. ॐ स्थिराय नमः ( जो स्थिर हैं )
  78. ॐ वृद्धिदाय नमः ( प्रगति और विकास प्रदान करने वाले )
  79. ॐ सुभगाय नमः ( जो अपने भक्तों को अच्छा भविष्य प्रदान करते हैं )
  80. ॐ शूराय नमः ( पराक्रमी )
  81. ॐ वागीशाय नमः ( वाणी के देवता )
  82. ॐ सिद्धिदाय नमः ( कार्य सिद्धि के साथ सफलता प्रदान करने वाले )
  83. ॐ दूर्वाबिल्वप्रियाय नमः ( जिन्हें दूर्वा तथा बिल्व पत्र अति प्रिय हैं )
  84. ॐ कान्ताय नमः ( जो सबके प्रिय एवं प्यारे हैं ) 
  85. ॐ पापहारिणे नमः ( पापों का नाश करने वाले )
  86. ॐ कृतागमाय नमः ( जिनका आगमन शुभ है )
  87. ॐ समाहिताय नमः ( जो ध्यान में लीन हैं )
  88. ॐ वक्रतुण्डाय नमः ( टेढ़ी-मेढ़ी सूंड वाले भगवान )
  89. ॐ श्रीप्रदाय नमः ( समृद्धि के दाता )
  90. ॐ सौम्याय नमः ( जो सुखद हैं )
  91. ॐ भक्ताकांक्षितदाय नमः ( भक्त की इच्छाओं के दाता )
  92. ॐ अच्युताय नमः ( जो स्थिर हैं )
  93. ॐ केवलाय नमः ( जो सिर्फ एक हैं )
  94. ॐ सिद्धाय नमः ( जो सम्पूर्ण हैं )
  95. ॐ सच्चिदानंदविग्रहाय नमः ( अस्तित्व-ज्ञान-परमानंद का अवतार )
  96. ॐ ज्ञानीने नमः ( महान ज्ञान )
  97. ॐ मायायुक्ताय नमः ( माया शक्ति का स्त्रोत )
  98. ॐ दन्ताय नमः ( जिसमें आत्म नियंत्रण है )
  99. ॐ ब्रह्मिष्ठाय नमः ( जो सदैव भगवान ब्रह्मा के ध्यान में हैं )
  100. ॐ भयावचिरताय नमः ( भय का नाश करने वाले )
  101. ॐ प्रमत्तदैत्यभयदाय नमः ( जो मादक शक्तियों के राक्षसों के लिए आतंक है )
  102. ॐ व्यक्तमूर्तये नमः ( अव्यक्त की अभिव्यक्ति )
  103. ॐ अमूर्तये नमः ( जो सार या अमूर्त है )
  104. ॐ पार्वतीशंकयेन्संखेलनोत्सवलालनाय नमः ( जो भगवान शिव और देवी पार्वती की गोद में खेलकर उनका प्रेम पा लेता है )  
  105. ॐ समस्तजगदाधाराय नमः ( सारे संसार के समर्थक ) 
  106. ॐ वरमूषकवाहनाय नमः ( जो अपने वाहन मूषक पर बैठकर सभी सभाओं का दौरा करते हैं )
  107. ॐ हृष्टस्तुताय नमः ( जो अति आनंदित है )
  108. ॐ प्रसन्नात्मने नमः ( तन मन से दयालु तथा उज्ज्वल प्यार का प्रतीक )  


5. भगवान गणेश को एकदन्त क्यों कहा जाता है | Why is Lord Ganesha called Ekdant 

गणेश पुराण के चतुर्थ खण्ड के सातवे अध्याय के अनुसार एक बार देवी पारवती और भगवान शिव कक्ष में सो रहे होते हैं और द्वार पर गनेश और कार्तिक दोनों पहरा दे रहे होते हैं। तब उस समय भगवान परशुराम कार्तुवीर्य का वध करके अत्यधिक उत्साहित होकर ब्रह्मा जी से मिलने पहुँचे और कहने लगे कि उन्होंने देश पर से राक्षसों का अंत कर दिया है और अब आप मुझे बताइये कि मुझे आगे क्या करना है ? तब ब्रह्मा जी उनसे कहते हैं कि इस संसार में समस्त बंधू-बांधव ( भाई सगे ), स्वजन, माता-पिता और अपने देवता से भी बड़ा स्थान अपने गुरु का होता है। गुरु ही उत्तम ज्ञान देकर भव सागर से पार करते हैं अतः मेरा आदेश है कि तुम अपने गुरु शिव जी की शरण में जाओ। 

परशुराम जी भोलेबाबा से मिलने कैलाश पर्वत चले जाते हैं। जब परशुराम जी भोलेबाबा से मिलने के लिए उनके कक्ष के अन्दर जा रहे होते हैं तो विग्नेश उन्हें रोककर उनसे कहते हैं कि आप अन्दर नहीं जा सकते। इस समय मेरे माता-पिता विश्राम कर रहे हैं तब परशूराम विग्नेश से कहते हैं कि बालक तुम मुझे नहीं जानते। मैं भोलेशंकर का शिष्य परशूराम हूँ, तब विनायक उनसे कहते हैं कि आप जो भी हो परन्तु आप अभी कक्ष के अन्दर नहीं जा सकते क्योंकि अभी मेरे माता-पिता विश्राम कर रहे हैं। परशूराम जी द्वारा बहुत समझाने के बाद भी विनायक नहीं मानते हैं और उन्हें कक्ष के अन्दर नहीं जाने देते हैं तब कुछ समय पश्चात् दोनों के बीच वाद विवाद बड़ जाता है तथा दोनों के मध्य युद्ध शुरू हो जाता है। 

कुछ समय तक दोनों के मध्य भयंकर युद्ध चलता है तब युद्ध के समय लम्बोदर, परशूराम जी को अपनी सूंड में लपेटकर पृथ्वी से बाहर फैंक देते हैं तब उन्हें अत्यधिक क्रोध आ जाता है और वह पुनः कैलाश में आ जाते हैं और अपने फरसे से लम्बोदर का एक दाँत काट देते हैं। तब लम्बोदर का टूटा हुआ दाँत देखकर माँ पारवती अत्यधिक क्रोधित हो जाती है और कार्तिक से पूछती है कि यह सब कैसे हुआ तब कार्तिक उन्हें सारी कहानी बताते हैं। 

क्रोध के कारण माँ पारवती परशूराम जी का वध करने के लिए अपनी समस्त शक्तियों को जाग्रत कर दूर्गा रूप धारण कर लेती है। तब वहाँ पर माता के क्रोध को शान्त करने के लिये एक वामन देव नाम का बालक प्रकट होता है और वह माता को समझाता है कि यदि उन्होंने परशूराम जी को दंड दिया तो इससे गुरु और शिष्य का सम्बन्ध ही टूट जायेगा। 

माता उनसे कहती है कि उनके पुत्र पर फरसे के प्रहार से दाँत टूटने के कारण उनके शरीर का एक अंग, भंग हो गया। इस वजह से वह अत्यधिक क्रोधित हैं तब वह बालक उनसे कहता है कि हर घटना के पीछे कुछ ना कुछ अच्छाई छिपी होती है अतः आज से आपके पूत्र त्रिलोक में एक दन्त के नाम से जाने जायेंगे। और उनकी शरण में आने वाले के विघ्न इसी तरह से नष्ट हो जायेंगे। जैसे परशूराम प्रहार से गनेश का एक दन्त कट गया है तभी से भगवान गणेश को एकदन्त कहा जाने लगा। 

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