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Ganesh ji story in hindi | गणेश जी के जीवन से जुड़ी कहानियाँ

रूपरेखा :-

1. गणेश जी का जन्म कैसे हुआ
2. गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है ?
3. सबसे पहले भगवान गणेश को ही क्यों पूजा जाता है  
4. किसी भी विवाह में सर्वप्रथम गणेश जी को ही निमंत्रण क्यों दिया जाता है 
5. दिवाली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की ही पूजा क्यों की जाती है भगवान विष्णु की क्यों नहीं |
6. भगवान गणेश जी के जीवन से जुड़ी कुछ अन्य बातें 
7. भगवान गणेश की आरती      

1. गणेश जी का जन्म कैसे हुआ | How Ganesh ji was born

हम सभी के प्यारे गणेश जी हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और उन्हें विघ्नहर्ता और सर्वश्रेष्ठ बुद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है।  गणेश जी के जन्म की कथा पौराणिक काल की है जो आज भी हमें देखने व सुनने को मिलती है जो कुछ इस प्रकार से है -

कहा जाता है कि देवी पार्वती एक दिन गोल और सुंदर सी एक मूर्ति बना रही थी। वह मूर्ति उनकी साधना के समय अवस्था में स्थिर रहने के लिए थी। इसके बाद पार्वती ने उस मूर्ति को प्राण प्रदान करने के लिए अपनी जीवन की समस्त शक्तियाँ एकत्रित की, और फिर उस इंसान रूपी मूर्ति को जीवित किया। कुछ समय पश्चात पार्वती जी स्नान करने के लिए अपने स्नान घर में गयी, तब उस समय भगवान शिव कैलाश पर नहीं थे तो उन्होंने गणेश जी से कहा कि वे द्वार पर खड़े रहें और किसी को अंदर नहीं आने दें।

तब माता के आदेश का पालन करते हुए गणेश जी ने किसी भी देवता को अंदर प्रवेश नहीं करने दिया और फिर जब भगवान शिव वहाँ आये तो उन्होंने शिव जी को भी अंदर नहीं आने दिया और इसे देखते हुए शिव जी को अत्यंत क्रोध आ गया जिसके चलते उन्होंने गणेश जी का " सर " धड़ से अलग कर दिया और जब माँ पार्वती ने गणेश जी का कटा हुआ सर देखा तो वह अत्यधिक क्रोधित हुई जिसके चलते बाद में शिव जी ने विष्णु जी के कहने पर गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनर्जीवित किया। 

2. गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है | Why Ganesh Chaturthi is celebrated 

भारत में हमारे देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना का अलग ही महत्व है। यहां पर हर देवी-देवता की अपनी एक विशेषता और अलग ही महत्व होता है जिनके लिए उनकी अलग-अलग अवसरों पर अलग-अलग तरह से पूजा की जाती है। जिनमें से गणेश चतुर्थी भी इन पवित्र त्योहारों में से एक है जो पूरी खुशी और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार को भगवान गणेश जी के आगमन की ख़ुशी में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है। इस दिन भगवान श्री गणेश जी की उपासना और पूजा की जाती है यह त्यौहार विशेष रूप से महाराष्ट्र, गोवा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में बहुत प्रमुखता से मनाया जाता है। इस दिन लोग घरों में गणेश जी की मूर्तियों की स्थापना करते हैं और उन्हें सुंदर वस्त्र और फूलों से सजाते हैं। इसके बाद प्रातःकाल में विधिवत पूजा की जाती है और गणेश जी की कथा का पाठ किया जाता है। पूजा के बाद प्रसाद के रूप में मोदक का भोग लगाया जाता है। 

गणेश जी को सभी मांगलिक कार्यों के प्रमुख देवता माना जाता है। व्यापार, निवास, शिक्षा, धन, सुख-शांति और सभी प्रकार की समृद्धि की कामना के लिए लोग गणेश जी की पूजा करते हैं और कहा जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन से 10 दिनों तक भगवान श्री गणेश स्वयं लोगों के घरों में रहने के लिए आते हैं इसलिए कईं लोग गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की मिट्टी से बनी मूर्तियों की स्थापना करते हैं और पूरी श्रद्धा और विश्वाश के साथ उनकी पूजा करते हैं जिससे लोगों के घरों में सुख - शान्ति बनी रहे और उनके व्यापार या नौकरी पेशे आदि का विस्तार हो सके।

3. सबसे पहले भगवान गणेश को ही क्यों पूजा जाता है | First of all why is Lord Ganesha worshiped 

शास्त्रों के अनुसार एक बार सारे देवताओं में आपस में इस बात को लेकर झगड़ा हो गया कि सबसे पहले पूजा/वंदना किसकी की जाये। तब इंद्र ने कहा कि मैं देवताओं का राजा हूँ इस वजह से सबसे पहले पूजा मेरी होनी चाहिये। इतने में जल देव वहाँ आ जाते हैं और कहते हैं कि आप सभी से पहले पूजा मेरी होनी चाहिये क्योंकि लोग पानी के बिना ( प्यास के कारण ) एक क्षण भी नहीं रह सकते। प्यास के कारण लोगों के प्राण जा सकते हैं और यदि मैं सुनामी बनकर आ जाऊँ तो दुनिया को तबाह कर सकता हूँ।

इतने में वायु देव आ जाते हैं और कहते हैं कि जल के बिना तो लोग फिर भी कुछ क्षण जीवित रह सकते हैं लेकिन बिना वायु के तो एक क्षण भी नहीं रह सकते इसलिए सबसे पहले पूजा मेरी होनी चाहिये। और कुछ समय पश्चात् अग्नि देव भी आ जाते हैं और कहने लगते हैं कि बिना जल और वायु के तो लोग मरेंगे लेकिन अगर मैं ही नहीं रहूँगा तो तुम देवताओं को भी भोजन प्राप्त नहीं होगा। क्योंकि यदि मैं ही नहीं रहूँगा तो हवन, यज्ञ ही नहीं होंगे जो देवताओं का भोजन है इसलिये सर्वप्रथम वंदना ( पूजा ) मेरी होनी चाहिये। और सारे देवता आपस में लड़ने-झगड़ने लग जाते हैं लेकिन अंततः कुछ भी समाधान नहीं निकलता है। 

तब इन्द्र ने सुझाव दिया कि हम सभी देवगण भगवान भोले शंकर के पास चलते हैं वही हमारी समस्या का हल निकाल सकते हैं इसलिए सभी देवता, भगवान भोले शंकर के पास पहुँच जाते हैं और उनसे कहते हैं कि प्रभू अब इस बात को लेकर विवाद बढ़ चुका है कि सबसे पहले वंदना ( पूजा ) किसकी की जाये। अतः आप ही इस बात का कुछ समाधान निकाले। 

आप जिस भी देवता का नाम लेंगे उसकी पूजा सर्वप्रथम की जायेगी। तब भोले बाबा सोचते हैं कि एक का नाम ले लिया तो दूसरा देवता नाराज हो जायेगा। इसलिए भोले बाबा एक प्रतियोगिता ( Competition ) रखते हुये कहते हैं कि जो भी सारे तीर्थों की परिक्रमा करते हुये सबसे पहले यहाँ आएगा उसी की वंदना सर्वप्रथम की जाएगी। इतने में सभी देवता अपने-अपने वाहन लेकर चक्कर लगाने के निकल जाते हैं परन्तु उन सभी के साथ गणेश जी नहीं जाते हैं क्योंकि उनका शरीर थोड़ा भारी था और उनका वाहन मूषक ( चूहा ) धीरे-धीरे चलता था। 

तब वह सोचने लगते हैं कि इस प्रतियोगिता में विजयी कैसे होया जाये और वह शास्त्रों का ध्यान करने लग जाते हैं तब वेदों में लिखी एक पंक्ति ( line ) उनके ध्यान में आती है कि जितने भी देवता हैं वह सभी गौ माता ( गाय ) के तन ( शरीर ) में और जितने भी तीर्थ हैं वो गौ माता के चरणों में निवास करते हैं। 

पंक्ति ध्यान में आते हीं गणपति सामने देखते हैं तो उन्हें सामने भोले शंकर बैठे हुये दिखाई देते हैं, उनके पास में माँ पार्वती बैठी हुयी है और भोलेनाथ अपने पास में नील मणी, वृषभ भगवान, बेल भगवान को लेकर के बैठे हुये हैं और माँ पार्वती अपने पास में गौरी नाम की गाय को लेकर के बैठी हुयी है। तभी गणपति मूषक ( चूहे ) पर बैठते हैं और उसी समय माता-पिता के साथ गौ-नंदी की सात परिक्रमा करके सामने खड़े हो गये। तब भोले बाबा ने उनसे पूछा कि गणेश आप नहीं जा रहे परिक्रमा करने, क्या आपको प्रथम पूजनीय देव नहीं बनना है ?

तो गजानन ने उनसे कहा कि पिताजी मैं सारे तीर्थों की परिक्रमा करके आ गया और मैंने एक नहीं बल्कि सात बार परिक्रमा कर ली है तो भोले बाबा ने कहा कि अभी तो तुम इधर-उधर घूम रहे थे तो फिर तुमने परिक्रमा कब पूर्ण कर ली। तो गजानन कहते हैं कि पिताजी आपने ही बुद्धि मानव को बुद्धि देकर शास्त्रों, ग्रंथों में कहा है कि समस्त संसार माता-पिता में निवास करता है तथा समस्त देवता गाय के शरीर में और समस्त तीर्थ गौ के पैरों में निवास करते हैं और मैंने माता-पिता के साथ-साथ गाय, बेल और वृषभ की परिक्रमा कर ली है। 

जिनमें समस्त संसार और समस्त तीर्थ निवास करते हैं तभी भोले बाबा ने यह घोषणा कर दी कि आज से इस संसार में सबसे पहले गणेश जी को ही पूजा जाएगा। इस कारण से जब भी हम कोई शुभ कार्य करते हैं तो सबसे पहले गणेश जी की पूजा करते हैं।  


Ganesh ji story in hindi
Ganesh ji story 

4. किसी भी विवाह में सर्वप्रथम गणेश जी को ही निमंत्रण क्यों दिया जाता है | Why is Ganesh ji first invited in any marriage ? 

यह घटना एक पौराणिक कथा पर आधारित है। इस कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु का माँ लक्ष्मी के साथ विवाह हुआ था तब उन्होंने भगवान गणेश को अपने विवाह में निमंत्रण ( Wedding invitation card ) नहीं दिया था। 

दरअसल यह पूरी लीला भगवान विष्णु द्वारा ही रची गयी थी जिसके माध्यम से वह सभी को यह बताना चाहते थे कि यदि कोई भी व्यक्ति शुभ कार्य करने से पहले गणपति की पूजा नहीं करता है या विवाह जैसे शुभ अवसर पर सबसे पहले गजानन को आमंत्रित नहीं करता है तो उसके कार्य की क्या दशा होती है।

विष्णु जी की बारात निकलते समय सभी देवी देवता एकत्रित होते हैं लेकिन वहाँ पर गजानन मौजूद नहीं थे तब किसी देवता ने उनसे पूछ लिया कि शादी में गजानन क्यों नहीं आये। तब विष्णु जी ने उत्तर दिया कि मैंने उनके पिता भोले नाथ को अलग से निमंत्रण दे दिया है। 

यदि गजानन आना चाहते तो भोले नाथ के साथ आ सकते थे फिर उनको अलग से निमंत्रण देने की क्या जरुरत है तथा विष्णु जी ने यह भी कहा कि गणपति को हर रोज खाने के लिए सवा मण ( 50 Kg ) गेहूँ, सवा मण चांवल ( 50 Kg ), सवा मण लड्डू ( 50 Kg ) और सवा मण घी ( 50 Kg ) चाहिए। 

किसी दूसरे व्यक्ति के घर जाकर इतना सारा भोजन करना भी ठीक नहीं है। तब उनमें से किसी देवता ने उन्हें सुझाव दिया कि यदि गजानन विवाह में आ भी जाते हैं तो उन्हें बाहर द्वारपाल के रूप में बैठा देंगे क्योंकि यदि वह बारात में सम्मिलित ( शामिल ) भी होंगे तो उनका मूषक ( चूहा ) धीरे-धीरे चलता है जिससे वह बारात में बारातियों से बहुत पीछे छूट जायेंगे तो इससे अच्छा तो यह है कि हम उन्हें बारात में लेकर ही ना जाये और उन्हें द्वारपाल बनाकर ही बाहर बैठा दे। 

कुछ समय बाद विनायक वहाँ पर आ जाते हैं तो उन्हें सब समझा बुझा कर बाहर द्वारपाल बनाकर बैठा देते हैं और बारात आगे चलने लगती है। तब नारद मुनि ने विनायक की ओर देखा और उनसे पूछ लिया कि आप बारात में शामिल क्यों नहीं हो रहे हो।

तब विनायक ने देवर्षि नारद से कहा कि विष्णु जी ने मेरा बहुत ही अपमान किया है और वह नहीं चाहते कि मैं बारात में शामिल होऊँ और उनकी शादी में आऊँ। तो नारद मुनि ने विनायक को सुझाव दिया कि आपको इन सभी का घमंड तोड़ना चाहिए। 

इस कार्य हेतू आप अपनी मूषक सेना को बारात से आगे भेज दें क्योंकि आपकी मूषक सेना में कुछ ऐसे चूहे भी है जो तेज गति से दौड़ते हैं तथा आप उन चूहों से कहें कि वह,जहाँ से बारात गुजरने वाली है वहाँ की जमीन को खोद-खोदकर पोली ( खोखली ) कर दें। ताकि बारात आगे ना जा पाये और उनके जितने भी वाहन है उनके पहिये मिट्टी में धस ( घूस ) जाये। 

तब विनायक बिल्क़ुल वैसा ही करते हैं वह अपनी मूषक सेना को आगे भेज देते हैं और उनके कहे अनुसार पूरी मूषक सेना जमीन को खोद-खोदकर पोली कर देते हैं जैसे-जैसे उस जगह से बारात गुजरती है तो उनके वाहनों के पहिये जमीन के अंदर धस ( घूस ) जाते हैं और बहुत प्रयास करने के बावजूद भी उन रथों के पहिये जमीन से बाहर नहीं निकल पाते हैं किसी-किसी रथ के पहिये तो टूट भी जाते हैं। 

जितना भी वो लोग पहियों को जमीन से बाहर निकालने का प्रयास करते उतने ही वह पहिये टूट जाते। तब नारद मुनि ने सभी देवगणों से कहा कि यह सब इसलिए हुआ है क्योंकि आप सभी ने ना तो गणेश जी की पूजा की और ना ही विष्णु जी ने विवाह में विनायक को निमंत्रण दिया।

आपने उनका अपमान किया है जिस कारण से बारात रुक गयी है तब सभी देवताओं को अपनी गलती का एहसास हो जाता है और भोले शंकर अपने दूत नंदी को विनायक को लाने के लिए भेज देते हैं और उनसे कहते हैं कि आप विनायक को मनाकर के यहाँ ले आये वरना हम आगे ही कैसे जा पायेंगे। 

तब कुछ समय बाद वहाँ विनायक आ जाते हैं और उनके आते ही सारे रथों के पहिये जमीन से बाहर निकल जाते हैं और जो पहिये टूटे थे उन्हें जोड़ने के लिए विनायक ने पास के खेत से एक मजदूर को बुलाया और उससे कहा कि आप इन रथ के पहियों को ठीक कर दीजिये। 

तब उस मजदूर ने अपना कार्य शुरू करने से पहले गणेश जी को स्मरण ( याद ) किया ( ॐ  गं गणपतये नमो नमः ------- कहकर ) तो सभी देवता उस मजदूर को देखते रह गये। तब उस मजदूर ने उन देवताओं से कहा कि शायद आप लोगों ने सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा नहीं की होगी। 

इस वजह से आपके कार्य में बाधा उत्पन्न हो गयी और आपकी बारात रुक गयी। देवताओं ने कहा कि हाँ ऐसा ही हुआ है तब उस मजदूर ने कहा कि आप तो देवता है फिर भी आप गणपति की पूजा नहीं करते फिर हम मनुष्य तो अज्ञानी और मूर्ख हैं। 

फिर भी हम गणपति का नाम लेकर के ही अपने दिन की शुरुआत करते हैं तो देवताओं को अपनी गलती का एहसास होता है। विष्णु जी ने हमें अपनी लीला के माध्यम से यह बताया कि उनके गणपति की पूजा नहीं करने से तथा विवाह में निमंत्रण नहीं देने से उनकी बारात भी रुक जाती है जबकि वह तो भगवान है। 

इसलिए हर कार्य की शुरुआत से पहले गणेश वंदना और " जय श्री गणेशाय नमः " मंत्र का उच्चारण करना आवश्यक है। सभी हिन्दू धर्म मानने वाले लोग अपने विवाह के निमंत्रण कार्ड में यह श्लोक अवश्य लिखवाते हैं -

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

अर्थ :-   है घुमावदार सूंड वाले, विशालकाय शरीर वाले, सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली मेरे गणेश भगवान। मेरे प्रभू, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न ( रुकावट ) के पूरे करें।।

👉विवाह सम्पन्न होने के पश्चात् गणेश जी को धन्यवाद दिया जाता है कि उन्होंने बिना किसी रूकावट या बाधा के उनका विवाह सम्पन्न करवाया। जिसके रूप में विवाह सम्पन्न होने के पश्चात् गणेश जी को विदा दी जाती है।👈


Lord ganesha story in hindi
Lord Ganesha life Story in hindi 

5. दिवाली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की ही पूजा क्यों की जाती है, भगवान विष्णु की क्यों नहीं | Why Lord Ganesha is worshiped along with Lakshmi ji on Diwali, Why not Lord Vishnu 

माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से इतना प्रेम करती है कि जब-जब Vishnu ji ने धरती पर अवतार लिया है तब-तब माँ लक्ष्मी ने उनकी प्रेमिका या उनकी पत्नी बनकर उनके साथ अवतार लिया है। पुराणों के अनुसार माँ लक्ष्मी तभी प्रसन्न होती है जब उनके साथ-साथ Vishnu ji की भी पूजा की जाये। लेकिन दिवाली पर माँ लक्ष्मी के साथ गणपति की पूजा होती है भगवान विष्णु की नहीं। इसके पीछे एक कारण तो यह है कि दिवाली पर लोगों द्वारा लक्ष्मी पूजन का उद्द्येश्य रहता है कि उनके घर में लक्ष्मी जी निवास करें।

इसलिये हर कोई दिवाली पर माता लक्ष्मी को प्रसन्न करता है और उनके घर में बस जाने की कामना करता है ताकि उनका परिवार फलता-फूलता रहे तो वहीं दूसरी ओर गजानन को बुद्धि, विवेक का देवता कहा गया है गजानन की दो पत्नियाँ है रिद्धि और सिद्धि तथा दो ही पुत्र हैं शुभ और लाभ। शुभ और लाभ गणपति के साथ-साथ Lakshmi ji से भी जुड़े हुये हैं क्योंकि लाभ के बिना Lakshmi ji का आगमन नहीं हो सकता और लाभ शुभ समय में ही होता है अर्थात शुभ और लाभ के आगमन के पश्चात् ही Lakshmi ji का आगमन होता है। 

 जब Lakshmi ji घर में आती है तो उन्हें सँभालने के लिए विवेक और बुद्धि की आवश्यकता होती है कहा जाता है कि लक्ष्मी जी को एक जगह पर रोके रखना सम्भव नहीं है यदि उन्हें रोकना है तो उसके लिये हमें बुद्धि और विवेक की आवश्यकता पड़ती है जो केवल गणपति के आशीर्वाद से ही मिल सकता है इसलिए माँ लक्ष्मी को अपने घर पर रोके रखने के लिये गणपति की भी पूजा की जाती है तथा उनसे बुद्धि और विवेक का वर माँगा जाता है। 

💨 इसके पीछे एक ओर कारण है जिससे दिवाली पर माता लक्ष्मीं के साथ गणपति की पूजा होती है पुराणों के अनुसार विग्नेश को माता लक्ष्मीं जी का मानस पुत्र माना जाता है, मानस पुत्र वह होता है जो कि इच्छा से प्राप्त होता है सम्भोग से नहीं। दरअसल पुराणों के अनुसार एक बार विष्णु जी ने माता लक्ष्मीं से यह बात कही कि कोई भी नारी पूर्ण तब होती है जब उसके कोई संतान हो। लेकिन लक्ष्मीं जी के तो कोई भी संतान नहीं थी तो वह माँ पार्वती के पास मदद के लिए गयी क्योंकि माँ पार्वती के दो पुत्र थे गणेश और कार्तिकेय।

जब लक्ष्मीं ने पारवती जी से विनती की, तो उन्होंने अपने पुत्र गणेश को उन्हें सौंप दिया तथा उन्होंने लक्ष्मीं जी से कहा कि आज से Ganesha मेरा और आपका दोनों का पुत्र है। इसके बाद माँ लक्ष्मीं ने पारवती से वादा किया कि वह हमेशा गनपति का खयाल रखेंगी तथा लक्ष्मीं जी ने यह भी कहा कि जब-जब इस संसार में मेरी पूजा होगी तब-तब मेरे साथ गनपति का पूजन भी किया जायेगा और गनपति के पूजन के बाद ही मेरी पूजा संपन्न मानी जायेगी। इसलिए दीपावली पर लक्ष्मीं जी के साथ उनके पुत्र गनपति का भी पूजन किया जाता है। 💨  

6. भगवान गणेश के जीवन से जुड़ी कुछ अन्य बातें | Some other things related to the Life of  Lord Ganesha 



1. भगवान गणेश के भोग में तुलसी का पत्ता नहीं रखा जाता। इसके पीछे एक पौराणिक कथा छिपी हुई है एक बार जब गनपति गंगा के तट पर तपस्या कर रहे होते हैं तभी वहाँ पर माँ तुलसी आती है और वह गनपति से विवाह करने के लिये कहती है जिससे तपस्या में मग्न गनपति का ध्यान भंग हो जाता है जिससे उन्हें यह बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगती है और तुलसी द्वारा किये हुए इस कार्य को अशुभ बताते हुये स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर तुलसी के विवाह के प्रस्ताव को ठूकरा देते हैं तब तुलसी को बहुत दुःख होता है और वह क्रोध में आकर गनपती को शाप ( श्राप ) दे देती है कि उनका विवाह उनकी इच्छानुसार नहीं होगा और उनके दो विवाह होंगे।
 

इस पर गणेश को भी क्रोध आ जाता है और वह भी तुलसी को श्राप दे देते हैं कि उनका विवाह एक असुर ( राक्षस ) से होगा। असुर से विवाह की बात सुनते ही उन्हें अपनी गलती समझ में आ जाती है तब वह गनेश जी से क्षमा ( माफी ) मांगती है। क्रोध शांत होने के बाद गनपति ने उनसे कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूड़ नामक राक्षस से होगा और श्राप पूर्ण होने पर तुम भगवान श्री कृष्ण को अत्यन्त प्रिय मानी जाओगी तथा कलयुग में तुम्हारा महत्व इतना अधिक होगा कि तुम लोगों को मोक्ष का मार्ग ( रास्ता ) दिखाओगी। परन्तु मेरी पूजा में तुम्हें अर्पित करना शुभ नहीं माना जायेगा। इसी कारण से गनेश जी के भोग में तुलसी का पत्ता नहीं डाला जाता।  

2. शास्त्रों के अनुसार गनपति के दो पत्नियाँ थी रिद्धि और सिद्धि यह दोनों प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियाँ थी। रिद्धि से विनायक को लाभ नाम का पूत्र प्राप्त हुआ तथा सिद्धि से शुभ नाम का पूत्र प्राप्त हुआ। शास्त्रों के अनुसार विनायक के दो बहुएँ भी थी जिनका नाम पुष्टि और तुष्टि था तथा उनके दो पोते भी है एक का नाम आमोद और दूसरे का नाम प्रमोद है। विनायक के एक पुत्री भी है जिसका नाम संतोषी है। 

3. विनायक की पुत्री माँ संतोषी की कथा इस प्रकार से है कि एक बार विग्नेश अपनी भुआ से रक्षा सूत्र ( राखी ) बंधवा रहे थे तो यह घटना उनके पुत्र शुभ और लाभ ने देखी। तब उन्होंने विग्नेश से पूछा कि आप यह धागा क्यों बंधवा रहे हैं तब विग्नेश ने कहा कि यह धागा नहीं रक्षा सूत्र है जो भाई-बहन के प्रेम का प्रतिक है तब शुभ और लाभ ने उनसे जिद करी। कि उन्हें भी एक बहन चाहिए तो विग्नेश ने अपनी समस्त शक्तियों को सम्मिलित करके एक ज्योति की रचना की और उस ज्योति को अपनी दोनों पत्नियों की आत्म शक्ति के साथ सम्मिलित कर दिया तथा उस ज्योति ने एक कन्या का रूप ले लिया जिसका नाम था संतोषी। जिसको आज हम संतोषी माता के नाम से जानते हैं और उनका व्रत रखते हैं। 

4. लम्बोदर को दूर्वा ( घाँस ) अत्यधिक प्रिय है तथा उनकी पूजा में दूर्वा का काफी महत्व है। कहा जाता है कि दूर्वा के बिना Ganpati की पूजा पूरी नहीं होती। एक कथा के अनुसार पुराने समय में अंगलासुर नाम का एक असुर था जिसकी वजह से स्वर्ग तथा धरती पर सभी परेशान थे अंगलासुर ऋषि मुनियों तथा आम इंसानो को जिन्दा निगल जाता था। तब उस असुर से परेशान होकर देवराज इन्द्र सहित सभी देवी देवता और प्रमुख ऋषि मुनि महादेव से प्रार्थना करने पहुँचे और सभी ने भोलेनाथ से प्रार्थना की।

कि वह अंगलासुर का नाश करे, तब महादेव ने उनसे कहा कि अंगलासुर का अंत केवल गनेश ही कर सकता है अतः उसका अंत करने के लिए जब लम्बोदर ने अंगलासुर को निगला तो उनकी पीठ में बहुत जलन होने लगी। कईं प्रकार के उपाय किये गये परन्तु फिर भी उनकी पीठ की जलन समाप्त नहीं हुई। तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा ( घाँस ) की 21 गाँठे बनाकर लम्बोदर को खाने के लिये दी और उन्होंने जब दूर्वा ग्रहण करी। तो उनके पीठ की जलन समाप्त हो गयी, तभी से लम्बोदर को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हुयी। 

5. गजानन को मिठाइयों में लड्डू सबसे अधिक प्रिय है इस कारण से उन्हें अलग-अलग तरह के लड्डुओं का भोग लगता है। 

6. गजानन जी की बहन का नाम अशोक सुंदरी था। 

7. गजानन को पीले गेंदे का फूल, शंक, केले अधिक प्रिय हैं। 

Ganesh ji aarti
Ganesh Ji Aarti

7. भगवान गणेश की आरती | Aarti of God Ganesha 

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।

एकदन्त दयावन्त, चार भुजा धारी ।

माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी ।।

पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा ।

लडूवन का भोग लगे, सन्त करे सेवा ।।

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।

अंधे को आँख देत, कोढ़िन को काया ।

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।।

सूर श्याम शरण आये, सफल किजे सेवा ।

लडूवन का भोग लगे, सन्त करें सेवा ।।

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।

👉बोलो गजानन गणेश जी महाराज की जय 👈  


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