विवाह से जुड़ी अपनी पुरानी संस्कृति के बारे में जाने इस Blog के द्वारा
इस Blog में दी गयी कविता Wedding or marriage के अवसर पर पुराने रीति रिवाजों से जुड़ी कविता के माध्यम से कवि हमें बताना चाहते हैं कि पहले के समय में किस तरह से पुराने रीति रिवाजों के साथ वर-वधू की शादी होती थी। जो कि आज की युवा पीढ़ी को जानने व पढ़ने में बढ़ी ही हास्यजनक लगती है। तो आइये इस रीति रिवाजों से जुड़े मजेदार Blog को पढ़ना शुरू करते हैं।
-: आपणीं पराणीं रीत रकांन :-
घणीं चालरी घणीं बदलगी,
आपणीं पराणीं रीत रकांन।
लगन लेर कवास जी आता,
मुखड़ा प छाती मुस्कान।
भाई सगा सब ऐगटा होता,
आणंद की उड़ती घमसांण।
अर्थ : कवि इन पंक्तियों के माध्यम से हमें पुराने समय के विवाह से जुड़े रीति रिवाजों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि हमारी पुरानी रीत व रश्में पहले के समय में तो बहुत चली और अब वर्तमान समय में पूरी तरह से बदल गयी।
कवि बताते हैं कि पहले के समय में जब वर-वधू की शादी होती थी तो उस समय वधू ( दुल्हन ) के घर वाले वर ( दूल्हे ) के घर पर लगन लेकर के आते थे, जिन्हें देखकर सभी के चेहरे पर एक तरह की मुस्कराहट सी आ जाती थी।
और जब शादी के अवसर पर दूल्हे व दुल्हन के सभी परिवार वाले एक साथ इकट्ठे होते थे, तो उस समय सभी परिवार वाले आपस में एक-दूसरे से मिलकर इतना अधिक खुश हो जाते थे कि फिर जैसे मानो उनकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा हो।
तेल बन्ध्याक अर बन्दोरी,
बन्ना बन्नी गाती रोजीना साम।
बिसकुट मल्या पतासा बंटता,
घर बंण जातो आणंद धाम।
समता सूं लागतो नतकै सींगसो,
हाथ पगां म मेहंदी लगाती नांण।
अर्थ : कवि बताते हैं कि जब पहले शादी होती थी तो उस समय तेल बैठते, बंध्याक ( दूल्हा व दुल्हन के विवाह के समय तक के साथी ) साथ रहते व दुल्हन की बन्दोरी ( निकासी ) निकाली जाती थी, और शादी होने तक प्रतिदिन शाम को औरतें बन्ना व बन्नी अर्थात गीत गाया करती थी।
तथा जब प्रतिदिन गीत गाकर घर जाने का समय आता था तो उस समय वर-वधू के घर वाले व्यक्तियों द्वारा उन औरतों को बिस्किट मिलाए हुए पतासे देते थे, जिन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे मानो कि उनका घर कोई आनंद धाम जैसा बन गया हो।
तब उस समय विवाह होने तक प्रतिदिन बढ़े ही आराम के साथ औरतों द्वारा वर व वधू के सीगसा अर्थात हल्दी लगाई जाती थी, और नाई की पत्नी ( बाल काटने वाले की पत्नी ) भी वर व वधू के तथा अन्य व्यक्तियों के हाथों-पैरों में मेहंदी लगाया करती थी। जो की वह पल उनकी शादी को ओर अधिक मजेदार बना देता था।
|
Wedding or marriage के अवसर पर पुराने रीति रिवाजों से जुड़ी कविता |
घर घर नूतता लाडा लाडी,
खाबाईं मलता फरता पकवान।
मसकां वाळा बाजा बाजता,
डेमड़ा प नंगारां की धूम धड़ाम।
बैलगाड़ी की पूजा करता,
जवांईंजी न पकड़ाता लगाम।
अर्थ : कवि बताते हैं कि पहले जब शादी होती थी, तो दूल्हे व दुल्हन को उनके आस-पास के पड़ोसी उनके घरों में खाना खाने के लिए निमंत्रण दिया करते थे, और फिर उस समय वह जहाँ भी झीमने ( खाना खाने ) जाते थे तो वहाँ उन्हें अलग-अलग तरह के स्वादिष्ट से स्वादिष्ट पकवान परोसे जाते थे।
और उस समय आज के जैसे बाजे नहीं बजाए जाते थे बल्कि मसका ( मुँह से हवा भरके बजाए जाने वाला एक Musical Instrument ) वाले बाजे बजाए जाते थे, और शादी होने पर किसी ऊँचे स्थान पर जोर-जोर से नंगारे बजाए जाते थे।
आगे कवि बताते हैं कि पहले किसी कार या बस में दुल्हन को विदा नहीं किया जाता था। बल्कि बैलगाड़ी में दुल्हन को उसके ससुराल भेजा जाता था जिसकी पहले पूजा होती थी, फिर उसे चलाने के लिए उनके जंवाई जी को उसकी लगाम दे दी जाती थी।
घट्यां घोड़ी बाजा की पूजा,
सरदा सूं गंगाजी चरी स्नान।
माता बैंहण्यां रोड़ी पूजती,
बैलगाड्यां सूं जाती जान।
छोर्यां क लेखे पड़तो हथेळो,
छौरां क सब पटकता बांन।
अर्थ : कवि बताते हैं कि पुराने ज़माने में जब शादी होती थी, तो पहले घट्टी ( गेहूँ, चना आदि पीसने की पत्थर की एक मशीन ) और फिर घोड़ी, बाजे की पूजा होती थी फिर इसके बाद दूल्हे की निकासी निकाली जाती थी, और उस समय तो गंगा चरी से भी स्नान करवाया जाता था।
और फिर सारी माँ और बहनें मिलकर के रेवड़ी ( घर का कचरा या गोबर फेंकने का एक स्थान ) की पूजा करती थी, फिर बैलगाड़ी से दूल्हा अपनी बारात को लेकर के दुल्हन के घर जाता था।
उस समय फेरे के वक्त लड़कियों की हथेली ( Palm ) में उसके घर वाले व्यक्तियों द्वारा कुछ ना कुछ दान में दिया जाता था, और लड़कों या लड़की के ससुराल वालों के लिए लड़की के घर वालों से जो भी बन पड़ता वो सभी चीजें उन्हें वह दहेज में दिया करते थे।
खात्यां का बा तोरण बणांता,
कागद की पन्यां को चतराम।
हाथी घोड़ा प्रजापतजी लाता,
सारा बलावा देता नाई नांण।
अगनी की सागसी म फैरा पड़ता,
अपणांता पूरा बिधि बिधान।
दो दन तांईं बरात जनवासे ठैहरती,
फैर बिदा करता सासरिये धाम।।
अर्थ : कवि बताते हैं कि पहले के ज़माने में लकड़ी के तोरण बनाए थे जो कि कोई खाती ( कारपेंटर ) बनाता था, और कागज की पन्नियों का चंदवा बनाया जाता था।
और उस समय हाथी घोड़े के साथ बारात आती थी, और सभी घरों में झीमने के लिए नाई व नाण ( बाल काटने वाला व्यक्ति व उसकी पत्नी ) बुलावा दिया करते थे।
आगे कवि बताते हैं कि पहले अग्नी को साक्षी मानकर के पूरे विधि-विधान के साथ सभी लोगों के सामने वर व वधू के फेरे पड़ा करते थे।
और बारात भी दो दिनों तक दुल्हन के द्वार पर ठहरा करती थी, फिर इसके बाद शादी होने के पश्चात् दुल्हन को उसके ससुराल जाने के लिए विदा किया जाता था।
👀 Ghani Chaalri Ghani Badalgi,
Aapni Parani Reet Rakaan .
Lagan Ler Kawas Ji Aata,
Mukhda Pe Chhati Muskan .
Bhai Saga Sab Egta Hota,
Aanand Ki Udti Ghamsan .
Tel Bandhyak Ar Bandori,
Banna Banni Gaati Rojeena Saam .
Biskut Malya Patasa Batta,
Ghar Ban Jato Aanand Dham .
Samta Soo Lagto Natkai Seegso,
Haath Paga Me Mehandi Lagati Naan .
Ghar Ghar Nootta Laada Laadi,
Khaabai Malta Farta Pakwan .
Maska Wala Baaja Baajta,
Demda Pe Nangara Ki Dhoom Dhadam .
Bailgadi Ki Pooja Karta,
Jawaiji Ne Pakdata Lagam .
Ghatyan Ghodi Baaja Ki Pooja,
Sarda Soo Gangaji Chari Snan .
Mata Baihanya Rodi Poojti,
Bailgadya Soo Jati Jaan .
Chhorya Ke Lekhe Padto Hathelo,
Chhoura Ke Sab Patakta Baan .
Khatya Ka Ba Toran Banata,
Kagad Ki Panya Ko Chatram .
Hathi Ghoda Prajapatji Lata,
Sara Balava Deta Naai Naan .
Agni Ki Saagsi Me Faira Padta,
Apnata Poora Bidhi Bidhan .
Do Dan Taai Barat Janwase Thaiharti,
Fair Bida Karta Sasriye Dham ..
👉 हमें आशा है कि आपको ऊपर दी गयी कविता को पढ़कर के पता चला होगा कि पहले के ज़माने में जिस रीति-रिवाज के साथ शादी हुआ करती थी वह आज के ज़माने में होने वाली शादियों से कितनी भिन्न है। आज भले ही Modern ज़माने के अनुसार शादियाँ होती हों, परन्तु पहले की शादियों का भी अपना एक अलग ही आनंद था।
अतः इस कविता से यही निष्कर्ष निकलता है कि आज के ज़माने में हम किसी भी रीति-रिवाज के साथ शादी करें, परन्तु हमें कभी भी अपने संस्कारों को नहीं भूलना चाहिए। 👈