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Holi-के अवसर पर मजेदार सी कविता


Holi-के अवसर पर मजेदार सी कविता

अरे लोगों लो अब आया रंगों का त्योहार होली,
तो आओ हम सभी भांग के नशे में खेलें मस्त होली।

दिल खोलकर होली खेलते हैं हम इस रंगों के मेले में,
और भूल जाते हैं अपने सभी गिले-शिकवे इस मस्ती में।

जब पिचकारी की फुंहार और गुलाल का रंग लगे तो, लगे इंसान रंगीला, 
इस पर्व पर मिलते हैं हमारे प्यारे दोस्त सभी और झूमते हुए खुशियाँ मनाते हैं।

अर्थ :- कवि होली के त्योहार के नजदीक आ जाने पर हम सभी को बताते हैं कि अब रंगों का त्योहार होली काफी नजदीक आ चूका है और अब हम इस दिन भांग के नशे में धूत होकर के मस्ती से होली खेलेंगे। इस दिन तो हम सभी खूब मस्ती से होली खेलते हैं और अपने जीवन के सभी दुःख-दर्द व एक-दूसरे की लड़ाइयों को भूल जाते हैं। तथा जब व्यक्तियों के ऊपर पिचकारी में भरा पानी व गुलाल का रंग लगाया जाता है तो फिर इंसान रंगीला सा दिखने लगता है तथा यही एक ऐसा त्योहार है जब हमारे सारे दोस्त हम से मिलते हैं व नाचते-गाते हुए खुशियाँ मनाते हैं। 

परंपरा के रंग नहीं हैं चलते जो किसी को रोके इस दिन,
दोस्त हमारे सबको रंग देते हैं इस दिन, और दिल खोलकर हँसाते हैं सभी को।

अरे इस दिन तो गिले-शिकवे भूलकर कईं जन्मों के दुश्मन भी बन जाते हैं दोस्त,
यह तो खुशियों का मेला है लोगों, इस मेले में जो डुपकी ना लगाए वो जीवन में अकेला है।  

अरे इस दिन तो गुलाल की बौछार से सभी के दिल खुल जाते हैं और हो जाते हैं सभी मस्त 
तथा याद आ जाते हैं उन्हें अपने आपसी रिश्ते,
इस दिन जैसे ही होवे लोग नशे में चूर फिर मीठी से मिठी यादें बन जाती हैं उनके दिलों की मेहमान। 

अर्थ :- आगे कवि बताते हैं कि इस दिन कोई भी व्यक्ति किसी को भी अपने दबाव में नहीं रख पाता क्योंकि इस दिन तो ना चाहें तब भी दोस्तों के द्वारा हमें रंग दिया जाता है और फिर सभी मिलकर हँसते-गाते हुए नाचने लगते हैं। यह तो ऐसा दिन है जिस दिन कईं जन्मों के पुराने दुश्मन भी अपनी दुश्मनी भूलकर हमारे दोस्त बन जाते हैं, यह तो एक ख़ुशी का अवसर है और अगर इस ख़ुशी के अवसर को भी कोई व्यक्ति नहीं मनाता है तो फिर वह जीवन में बिल्कुल अकेला है। इस दिन जब लोगों द्वारा गुलाल उड़ाई जाती है तो होली नहीं खेलने वाले लोग भी स्वयं को नहीं रोक पाते हैं और सभी के साथ होली खेलने में मस्त हो जाते हैं तथा होली खेलते-खेलते उन्हें अपने पुराने रिश्ते भी याद आ जाते हैं, यदि इस दिन लोगों द्वारा नशा कर लिया जाता है तो फिर उन्हें अपनी पूरानी सुनहरी यादें भी याद आने लग जाती है।   

Holi-के अवसर पर मजेदार सी कविता
Holi-के अवसर पर मजेदार सी कविता 

इस दिन के आनंद के लिए भांग की मिठास से होती हैं शुरुआत कईं लोगों की,
और फिर होली का रंग भी अलग है नशा चढ़ाने के लिए, तथा जैसे ही चढ़े नशा लगे उन्हें सभी विशेष।

भलें ही एक-दूसरे की नजरों में बुरे हो जाएं पर सब मिलकर रंगते हैं एक-दूसरे को,
इस दिन बच्चे, बड़े सभी खुश होकर रंगों में बस रंगते चले जाए एक-दूसरे को और मिलकर 
बोलें "बुरा ना मानो होली है"।

हमारी ओर से सबको होली की बधाई, और ख़ुशी 
सभी की हंसी हमेशा इसी तरह से बनी रहे,यही मनोकामना हैं हमारी।

अर्थ :- आगे कवि बताते हैं कि इस दिन कईं लोगों की तो शुरुआत ही मीठी भांग ( भांग की लस्सी ) से होती है और फिर उन पर होली का रंग अलग डाल दिया जाता है जिससे उनका नशा ओर अधिक तेज हो जाता है तथा कुछ समय बाद जैसे ही उन पर वह नशा चढ़ने लगता है तो उन्हें सभी व्यक्ति एक विशेष तरह से दिखाई देने लग जाते हैं। इस दिन भले ही व्यक्ति दूसरे की नजर में खुद को बुरा बना लेते हैं पर फिर भी एक-दूसरे को रंग अवश्य लगाते हैं, और इस दिन बच्चे, बड़े सभी एक दूसरे को ख़ुशी से रंग लगाते हुए कहते हैं कि "बुरा ना मानो होली है"।

Note :- तो आइये हम इस अवसर को ओर अधिक आनंदमयी बनाने के लिए एक ओर कविता के बारे में पढ़ते हैं -

हमारे लिए बंदन होली का रंगों का एक त्योहार है,
जगत में चारों ओर खुशियों की बौछार है क्योंकि आया होली का त्योहार है। 

सभी की आँखों में एक नयी चमक और दिलों में उमंग लिए,
आया हैं फिर से वो प्यारा होली का त्योहार है।

सभी को इस बार तो अपने गिले शिकवे भूलकर दुश्मनों लो भी गले लगाना हैं,
और भूलकर दुश्मनी बताना उन्हें अपना दोस्ताना हैं क्योंकि आया होली का त्योहार है।

अर्थ :- आगे दूसरी कविता में कवि हमें बताते हैं कि हम सभी के लिए होली एक रंगों का त्योहार है और जब यह त्योहार नजदीक आता है तो संसार में चारों ओर खुशियों की एक लहर सी दौड़ जाती है। जब होली का त्योहार आता है तो सभी व्यक्तियों की आँखों में एक नयी चमक और दिलों में एक प्यार भरी उमंग सी जग जाती है। और इस बार तो हमें अपने सारे दुश्मनों से दुश्मनी को भूलकर के सभी को गले लगाने का प्रयास करना है तथा उन्हें बताना है कि हमारी दोस्ती उनकी दुश्मनी से कईं ज्यादा बढ़कर के है। 

इस दिन तो देखो पिचकारी से बहता हैं रंगों भरा पानी,
और खेलते हीं सभी लोगों के दिल खुश हो जाते हैं क्योंकि 
आख़िरकार आया होली का त्योहार है।

अरे इस दिन तो खिल जाते हैं फूल गुलाल के रंग में भी,
और खुशियाँ मिलती हैं जीवन की अँधेरी रातों में भी।

जैसे ही होठों पर आये भांग की मिठास और गालों पर लगे गुलाल का सौंदर्य,
लगे होली हैं मीठे गीतों का संगीत, इसमें बस झूमते ही जाओ झूमते ही जाओ।
इस दिन खेलते हैं सभी मिलकर, और रंगों से सजाते हैं गली-गली,
होली के इस रंगरलियों की धूम मची हैं खिली है लोगों की कली-कली।

अर्थ :- आगे कवि होली के बारे में बताते हुए कहते हैं कि इस दिन जैसे ही पिचकारी में भरा रंगों का पानी एक-दूसरे के ऊपर डाला जाता है तो उस पानी से भीगते हीं लोगों के दिल खुश हो जाते हैं। यह तो ऐसा दिन है जिस दिन रंगों में भी गुलाल के फूल खिल जाते हैं और लोगों को अँधेरी रातों में भी खुशियाँ मिलने लग जाती है। तथा जैसे ही लोग भांग पी लेते हैं और गालों पर गुलाल लगा लेते हैं तो उन्हें यह होली मीठे गीतों का एक संगीत सी लगने लग जाती है फिर उन्हें लगता है कि वह इसमें बस खोते ही रहें, खोते ही रहें। इस दिन तो कईं लोग इतने भयंकर तरीके से होली खेलते हैं कि फिर उनके द्वारा हर गली को रंग दिया जाता है, और इस दिन को लेकर के कईं लोगों को तो इतनी ख़ुशी होती है कि इस त्योहार के आने की ख़ुशी सुनते हीं उनकी कली-कली खिल उठती है।      

अरे यह तो प्यार और भाईचारे का त्योहार हैं इसमें कैसी शर्म और नाराजगी,
इस दिन तो खुशियाँ बाँटने का मिला सभी को एक मौका है। 

अर्थ :- अंत में कवि कहते हैं कि होली तो एक प्यार और आपस में भाईचारे का त्योहार है इसे खेलने में कैसी शर्म और नाराजगी, यही तो एक ऐसा दिन है जब हमें खुशियाँ बाँटने का एक मौका मिलता है। 

होली की शुभकामनाएं, हमारी ओर से सभी को, 
खुश रहें और हमेशा मुस्कुराते रहें सब, यही मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ।

💨अकसर लोगों द्वारा एक सवाल पूछा जाता है कि आख़िरकार होली क्यों मनाई जाती है ? तो आज हम आपको उसी सवाल का जवाब बताएँगे -

Holi celebrate but why|होली क्यों मनाई जाती है ?


होली के योहार को भारत में रंगों के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है इस त्योहार को भारत में मनाने के पीछे दो कहानियाँ जुड़ी हुई है एक तो भक्त प्रहलाद, उनके पिता हिरण्यकश्यप व भुआ होलिका की कहानी तथा दूसरी भगवान श्री कृष्ण के बरसाने में होली खेलने की कहानी जिसे धूलंडी के रूप में मनाया जाता है।  

होली के त्योहार की एक प्रसिद्ध कहानी तो एकादशी और हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद के जीवन से जुड़ी है। प्रहलाद, भगवान विष्णु का भक्त था, जबकि उसके पिता हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के शत्रु। हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति नहीं करने देता था। प्रहलाद को भक्ति करने से रोकने के लिए वह हिरण्यकश्यप प्रतिदिन नई-नई योजनाऐं बनाता था, परंतु प्रह्लाद अपने भक्ति के प्रति डटा रहता था और उसका भगवान विष्णु में अटूट विश्वास था इस वजह से हिरण्यकश्यप की किसी भी योजना का उस पर कोई असर नहीं होता था। 

एक दिन हिरण्यकश्यप ने योजना बनाई की वह अपनी बहन होलिका को अग्नी में प्रह्लाद के साथ बैठा दे, ताकि प्रहलाद उस अग्नी के साथ ही जल जाये क्योंकि होलिका को तो वरदान था कि कोई भी अग्नी उसे नहीं जला सकती। परन्तु भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रहलाद को कुछ भी नहीं होता है और होलिका उस आग जल जाती है। अतः तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में हर साल होलिका दहन किया जाता है। 

दूसरे दिन धूलंडी की कहानी यह है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने बरसाने में समस्त बृजवासियों के साथ गुलाल के साथ लठमार होली खेली थी। तभी से होली के दूसरे दिन को धूलंडी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग एक- दूसरे को प्रेम से रंग लगाते हैं तथा मिठाई वगैरह खिलाकर के एक-दूसरे को होली की बधाइयाँ देते हैं। 

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