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Modern जमाने पर सुन्दर सी कविता हिंदी में

इस Blog में हम Modern जमाने पर सुन्दर सी कविता हिंदी में  के बारे में पढ़ेंगे जिसमें दर्शाया गया है कि इस Modern या आधुनिक संस्कृति के आ जाने से समाज में तथा समाज के लोगों में किस-किस तरह के परिवर्तन आ जाते हैं। 


" सनातन संस्कृति को राखां मान "  

खेती बदली करसाणीं बदली,

              बदली सारी रीत रकांण। 

मनख्यां को मिजाज बदलग्यो,

              बदल्या सारा ताम झाम। 

गणेशजी न तोरण समझ क मारे,

              कस्यां होवगो सा कल्याण। 


अर्थ : कवि इन पंक्तियों के माध्यम से आधुनिक जमाने तथा आधुनिक संस्कृति को दर्शाना चाहते हैं और कहते हैं कि अब जमाना परिवर्तित हो गया है और इस जमाने में हिन्दू धर्म ( सनातन संस्कृति ) में भी परिवर्तन आ चुका है।

कवि कहते हैं कि आधुनिक जमाने के आते हीं किसानों के खेत खलिहान, भाषाओँ सभी में परिवर्तन आ चुका है, और सारी रित व रश्मे सब कुछ बदल चुकी है। इस जमाने के आते ही व्यक्तियों के बोलने का अंदाज़ परिवर्तित हो गया और इसी के साथ हर तरह की वस्तुओं में भी परिवर्तन आ चुका है। 

अब इस जमाने में तो विवाह के समय गणेश जी को तोरण समझकर मारा जाता है जब गणेश जी पर ही कटार या तलवार आदि से वार किया ( तोरण मारा ) जा रहा हो, तो फिर बताओ ऐसे में इस समाज का व समाज के व्यक्तियों का कल्याण कैसे होगा। 

जिंदो तोरण अळयां गळयां म डोले,

              वू खावे बर बधु का प्राण। 

हाय हलो की अब नई फैसन आगी,

              सब भूल्या करबो राम राम। 

चरण छूबा को भी ढंग बदलग्यो,

              चरण छूर कुंण करे प्रणाम। 


अर्थ : शादी के अवसर पर तोरण मारने के पश्चात् लोगों द्वारा तोरण को इधर-उधर रख दिया जाता है, जिसके कारण बाद में वह तोरण वर-वधु को परेशान ( दुर्घटनाओं द्वारा ) करता है इसलिए तोरण मारने के पश्चात् उसे इधर-उधर रखने के बजाय उसे उसकी सही जगह पर संभालकर रखना चाहिए। 

कवि कहते हैं कि पहले के समय में तो व्यक्ति आपस में एक-दूसरे से मिलने पर राम-राम किया करते थे परन्तु अब आधुनिक जमाने में लोग राम-राम करना तो भूल गये हैं और उन्होंने राम-राम करने के बजाय हाय-हलो करना शुरू कर दिया है। 

पहले के समय में प्रातःकाल लोगो द्वारा अपने से उम्र में बढ़े व्यक्तियों या बुजुर्गों का आशिर्वाद लिया जाता था परन्तु अब तो चरण स्पर्श करने की परम्परा लगभग समाप्त सी हो गयी है। 

Modern जमाने पर सुन्दर सी कविता
Modern जमाने पर सुन्दर सी कविता 

नीचे नमतां मोट्यारां की कमर दूखे,

              गोडा ऊपर दीखे चरणां की ठाम।

बेमतलब की बैहस बुजुर्गां सूं करे,

              न मांने बड़ा बूढ़ा की कांण। 

दन भर घणां फाक्या मारे रोटी तोड़ा,

              आणंद सूं सोवे खूंटी तांण। 


अर्थ : कवि कहते हैं कि युवा पीढ़ी इसलिए बढ़े बुजुर्गों के पैर नहीं छूती क्योंकि नीचे झुककर चरण स्पर्श करने से उनकी कमर में दर्द होने लगता है और उन्हें नीचे झुककर चरण स्पर्श करने में अब उन्हें शर्म सी आती है, इस वजह से युवा पीढ़ी चरणों तक झुककर प्रणाम करने की अपेक्षा उनके घुटनों तक ही हाथ लगाकर प्रणाम कर लेते हैं। 

आज के समय में युवा पीढ़ी किसी भी बात को लेकर के बेमतलब ही बढ़े-बुजुर्गों से बहस करने में लग जाते हैं और हमेशा खुद के ही मन की करने में लगे रहते हैं, कभी भी बढ़े-बुजुर्गों की बात नहीं मानते जिसके चलते बाद में युवा पीढ़ी को ही पछताना पड़ता है। 

एक तो आजकल की युवा पीढ़ी किसी तरह के कोई काम धन्धे नहीं करते और ऊपर से व्यर्थ ही इधर-उधर की फालतू की बातें करने में लगे रहते हैं, युवा पीढ़ी आज के समय में किसी भी बात की कोई टेंशन नहीं लेती और बिना किसी बात की टेंशन लिए ही वह आनन्द से सोते रहते हैं। 

धरम करम की सारी बातां बिसर्या,

              करे बना काम की रामांण। 

नकटा बूंच्या न कदी सर्या न सीज्या,

              बगर अकल का बांटे ज्ञान। 

सांचा सतगुरु पड्या आड़ी कळौटां,

              लोभी लाळची पावे मान। 


अर्थ : कवि इन पंक्तियों के माध्यम से आजकल की युवा पीढ़ी के बारे में वर्णन करते हुए कहते हैं कि आज की युवा पीढ़ी तो धर्म-कर्म की सारी बातों को भूल ही गयी, और धार्मिक बातें करना छोड़ दिन भर बिना काम की बातें करने में लगी रहती है। 

जिस बात का कोई परिणाम नहीं निकलता वही बातें वह करने में लगे रहते हैं, और इसी के साथ व्यर्थ ही बिना अक्ल की बातें भी करते रहते हैं। 

आज के इस समाज में सच्चे व अच्छे लोग तो बहुत कम हो गये हैं, और लोभी तथा लालची लोगों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती ही चली जा रही है जो किसी न किसी तरह से सम्मान पाने में लगे रहते हैं।


गारां की मांथणीं आंसूड़ा ढळकावे,

              ठण्डा फ्रीजां न खेंची टांग। 

आरो का नया चोचला आया घर घर,

              भूल्या पीबो नांतणां सूं पांणीं छांण। 

पंडाल म बैठ भलांईं महाभारत सुंणां,

              पंण हरदा म उतारां रामायण ज्ञान। 

बगर काम की नंदरा सूं आपण बचां,

              सनातन संस्कृति को राखां मान ।।    


अर्थ : कवि इन पंक्तियों के द्वारा आधुनिक संस्कृति ( आधुनिक बदलाव ) के बारे में बताना चाहते हैं। वह कहते हैं कि पहले के समय में मिट्टि से बनी मटकियों के द्वारा पानी को ठण्डा किया जाता था परन्तु अब मटकी का चलन तो बहुत कम हो गया है, और उसकी जगह फ्रीजों ने ले ली है इस कारण से आज के समय में अधिकांश व्यक्ति पानी ठण्डा करने के लिए मटकी की अपेक्षा फ्रीज का इस्तेमाल करते हैं। 

फ्रीज तो आया जो आया परन्तु अब तो आरो ( वाटर प्योरिफाई ) भी लगभग हर घर में आ गया है, और इसके आ जाने के कारण व्यक्ति कपड़े से पानी छानकर पीना तो जैसे भूल ही गये हैं। 

आज के समय में व्यक्ति पांडाल में तो महाभारत के वचन ( कथा ) सुनते हैं परन्तु हृदय में रामायण के वचनों को धारण करते हैं जबकि हमें ऐसा बिलकुल भी नहीं करना चाहिए हम जिस समय जिस चीज के बारे में पढ़ व सुन रहे होते हैं तब उस समय हमें उसी के वचनों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। 

हमें बिना बात ही किसी की नींदा ( बुराई ) नहीं करनी चाहिए और यदि कोई व्यक्ति हमारी नींदा करता है तो हमें उससे भी बचना चाहिए, और साथ ही हमें हिन्दू धर्म की संस्कृति तथा इसका मान सम्मान का ध्यान रखना चाहिए। हमें कभी भी आधुनिक संस्कृति पर इतना अधिक निर्भर नहीं रहना चाहिए कि वह हमारे धर्म तथा हमारे स्वाभिमान पर हावी हो जाए। 

Modern culture poem in hindi
Modern culture poem in hindi

💨 " Sanatan Sanskriti Ko Rakha Maan "

Kheti Badli Karsani Badli,

            Badli Saari Reet Rakaan . 

Mankhya Ko Mizaz Badalgyo,

            Badlya Saara Tam Jham . 

Ganeshji Na Toran Samajh K Maare,

            Kasyan Hovgo Sa Kalyan . 

Zindo Toran Alya Galya Ma Dole,

            Woo Khave Bar Badhu Ka Praan . 

Hy Hello Ki Ab Nai Fation Aagi,

            Sab Bhoolya Karbo Ram Ram . 

Charan Chhooba Ko Bhee Dhang Badalgyo,

            Charan Chhoor Kun Kare Pranam . 

Neeche Namta Motyara Ki Kamar Dookhe,

            Goda Uper Deekhe Charna Ki Thaam . 

Bematlab Ki Baihas Bujurgan Soo Kare,

            Na Maane Bada Boodha Ki Khen . 

Dan Bhar Ghana Faakya Maare Roti Toda,

            Aanand Soo Sove Khoonti Taan . 

Dharam Karam Ki Saari Baata Bisarya,

            Kare Bana Kam Ki Ramaan . 

Nakta Boochya Na Kadi Sarya Na Seejya,

            Bagar Akal Ka Baante Gyan . 

Saancha Satguru Padya Aadi Kalouta,

            Lobhi Lalchi Paave Maan . 

Gaara Ki Mathni Aasooda Dhalkave,

            Thanda Freeza Na Khenchi Taang . 

Aaro Ka Naya Chochla Aaya Ghar Ghar,

            Bhoolya Peebo Naatna Soo Paani Chhan . 

Pandal Ma Baith Bhalai Mahabharat Suna,

            Pan Harda Ma Utara Ramayan Gyan . 

Bagar Kaam Ki Nandra Soo Aapan Bacha,

            Sanatan Sanskriti Ko Rakha Maan ....     

हमें आशा है की आपको इस Blog Post Modern जमाने पर सुन्दर सी कविता हिंदी में को पढ़कर अच्छा लगा होगा। आपको इस Post को पढ़कर समझ में आ गया होगा कि आधुनिक संस्कृति के आते ही समाज किस तरह से स्वयं ही परिवर्तित होने लग जाता है, इस संस्कृति की अच्छाई व बुराइयाँ दोनों ही है जो हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम इसकी अच्छाइयों को अपनाते हैं या बुराइयों को।   

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