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India की गरीबी पर कविता

इस Blog में दी गयी कविता India की गरीबी पर कविता के द्वारा कवि हमें भारत देश की गरीबी तथा गरीब लोगों की पीड़ाओं से अवगत करवाना चाहते हैं। तथा वह हमें बताना चाहते हैं कि किस तरह से गरीब व्यक्तियों को गरीबी लगातार परेशान करती ही चली जाती है व अमीरों के तो यह पास तक आने से कतराती है और साथ ही साथ इस कविता में कवि कृष्ण-सुदामा की मित्रता की एक छोटी सी झलक भी प्रस्तुत करते हैं। जो इस कविता को ओर अधिक सुन्दर बना देती है तो आइये इस Blog को पढ़ना शुरू करते हैं। 


अन्न  को कणूंको कौने,

      रोज माचे धाड़म धाड़। 

छौरा छौरी उगाड़ा डोले,

      टोटा म रोटा की राड़। 

घर म ऊंदरा ग्यारस करे,

      नतकै उखाड़ पछाड़। 


अर्थ : कवि इन पंक्तियों के माध्यम से भारत देश के गरीब व्यक्तियों की पीड़ाओं के बारे में बताते हुए कहते हैं कि हमारे देश में गरीब व्यक्तियों के घरों में गरीबी इस कदर तक छायी हुई है कि उनके घरों में खाने तक के लिए दाने नहीं बचे हैं, जिसके कारण उन्हें प्रतिदिन खाने के लिए एक तरह की जंग लड़नी पड़ती है। 

हमारे देश में गरीब व्यक्तियों के बच्चे ऐसे ही बिना कपड़ों के इधर-उधर घूमते रहते हैं, जो कि उनकी अत्यधिक गरीबी को दर्शाता है। 

कईं बार तो यह गरीब व्यक्ति खाना नहीं मिलने के कारण भूखे पेट ही सो जाते हैं, और उनको प्रतिदिन इस बात को लेकर भी सोचना पड़ता है कि आज खाने का इंतजाम कैसे किया जाये। 

धोवती फाड़ पंज्यो करे,

      नतकै ढ़ांकै फाचै उगाड़। 

दन रात करे यह मेहनत,

      फैर भी रै वे फटे हाल। 

टेम प रोटी मलबो मौसर,

      असी गरिबी आगी बाळ। 


अर्थ : कवि बताते हैं कि कईं बार तो यह गरीबी, गरीब व्यक्तियों को इस कदर से जकड़ लेती है कि फिर यदि वह इससे निकलकर थोड़ा ऊपर भी आना चाहे तब भी यह उन्हें ऊपर नहीं आने देती है, और उनके प्रतिदिन किये जाने वाले इसी प्रयास को विफल बना देती है। 

दूसरी पंक्ति के द्वारा कवि बताते हैं कि यह गरीबी, गरीब व्यक्तियों को इस कदर से अपने जाल में फसाये हुए है कि इससे निकलने के लिए बेचारे गरीब व्यक्ति दिन-रात मेहनत-मजदूरी करते रहते हैं, फिर भी इससे बाहर नहीं निकल पाते हैं और कड़ी मेहनत करने के बावजूद भी उन्हें उसी गरीबी के साथ अपना समस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। 

तीसरी पंक्ति द्वारा कवि बताते हैं कि इस गरीबी ने हमारे देश के गरीब व्यक्तियों को इस तरह से परेशान कर रखा है कि कईं बार तो उन्हें समय पर दो वक्त की रोटी मिलना भी मुश्किल हो जाता है, ऐसे में कवि कहते हैं कि ऐसी गरीबी सभी व्यक्तियों से दूर रहे तो ही अच्छा है। 

India की गरीबी पर कविता
India की गरीबी पर कविता  

अमीरां सूं दूर रै वे गरीबी,

      गरीबां प फैंकअ जाळ। 

गरीबां क घर माथो मारे,

      या वांनैं कर दे कंगाल। 

गरीबां न या धोर नचोवे,

      कस्यां गळे वांकी दाळ। 


अर्थ : कवि बताते हैं कि अकसर यह देखा गया है कि गरीबी अमीर व्यक्तियों से तो कोसों दूर रहती है, और गरीब व्यक्तियों पर अपने जाल को फैलाती है ताकि वह आसानी से इससे बाहर नहीं निकल सके। 

दूसरी पंक्ति में कवि कहते हैं कि यह गरीबी, बेचारे गरीब व्यक्तियों के घरों में जाकर के अपना ढेरा डालती है, और उन्हें कंगाल कर देती है। 

कवि बताते हैं कि यह गरीबी, बेचारे गरीब व्यक्तियों को इस तरह से धो डालती है अर्थात इस कदर से उन्हें परेशान कर देती है, कि फिर यह कभी भी उनकी दाल नहीं गलने देती अर्थात फिर यह उन व्यक्तियों के द्वारा गरीबी से निकलने के लिए किये गये कार्यों को कभी भी पूरा नहीं होने देती। 

सत्यां का सराप छै यह,

      या करमां की टेढ़ी चाल। 

कोयां का तो मन ई बेरी,

      कोयां क रोटी न दाळ। 

अमीरां क सटरस भोजन,

      भूखो दीन्यां को लाल। 


अर्थ : तब कवि कहते हैं कि यह पिछले जनम के कोई श्राप है या उन व्यक्तियों द्वारा किये गये करमों का कोई फल। 

कवि बताते हैं कि संसार में कईं व्यक्तियों के तो मन में ही दूसरे व्यक्तियों के प्रति पाप या बैर द्वैष की भावना छिपी रहती है, और बेचारे कईं व्यक्तियों को तो खाने के लिए दाल-रोटी भी नसीब नहीं हो पाती। 

तीसरी पंक्ति के द्वारा कवि बताते हैं कि संसार में अमीर व्यक्तियों के बच्चों को तो खाने के लिए स्वादिष्ट-स्वादिष्ट भोजन मिलते हैं, और गरीब व्यक्तियों के बच्चों को तो कईं बार भूखे रहने तक की नौबत का सामना करना पड़ जाता है। 


कृष्ण सा सखा सुदामा का,

      परिवार को बरो हाल। 

भिक्षावृत्ति सूं परिवार पाळे,

      रोटी मांगे बाल गोपाल। 

गरीबी न घणौं नाच नचायो,

      आंसूड़ा सूं भीज्या गाल। 


अर्थ : आगे कवि कृष्ण सुदामा की मित्रता के बारे में बताते हुए कहते हैं कि द्वापर युग में सुदामा के पास तो श्री कृष्ण जैसे मित्र थे, जिन्होंने उनके परिवार के बुरे हालातों तथा उनकी गरीबी को संभाल लिया। परन्तु कलयुग में तो गरीब व्यक्तियों के ऐसे कोई भी मित्र नहीं है जो उनकी गरीबी को दूर कर सके। 

उस समय में तो सुदामा जी ने भिक्षा माँग करके ही अपने परिवार का पेट पाल लिया था, और उनके बच्चों ने भी रोटी माँगकर अपना पेट भर लिया था। परन्तु आज के समय में तो लोग गरीबों को भिक्षा भी नहीं देते। 

ऐसे में कवि कहते हैं कि इस गरीबी ने हमारे देश के गरीब व्यक्तियों को बहुत नाच नचाया है अर्थात उन्हें खूब परेशान किया है, और उनकी आँखों में इस कदर से आँसू ला दिये हैं कि उनके रो-रोकर के गाल भी आँसुओं से भीग गये हैं। 


तीन मुट्ठी चांवल लेर चल्यो,

      कृष्ण की आंख्यां लाल। 

घणां अनादर करे अन्न को,

      फैंकअ भर भर थाळ। 

कोयां न भरपेट मले न रोटी,

      मूंडा सूं खडअ गाळ।।


अर्थ : कवि कहते हैं कि उस समय में तो सुदामा जी अपनी गरीबी के चलते तीन मुट्ठी चांवल लेकर के ही अपने मित्र कृष्ण से मिलने के लिए चल दिये थे, और भगवन श्री कृष्ण की भी अपने मित्र को देखकर आँखे भर आयी थी। परन्तु आज के समय में तो अमीर व्यक्ति अपने किसी गरीब मित्र को देखना तक पसंद नहीं करते। 

दूसरी पंक्ति में कवि बताते हैं कि जिन व्यक्तियों को खाने के लिए अच्छे से दो वक्त का भरपूर भोजन मिलता है वह व्यर्थ ही अन्न का अनादर ( अपमान ) करते रहते हैं, और थालियाँ भर-भर के उसे ऐसे ही फेंक देते हैं। 

कोई तो ऐसे ही थालियाँ भर-भर के खाने को फेंक देता है और बेचारे कईं व्यक्तियों को तो भरपेट खाना तक नसीब नहीं हो पाता, ऐसे में यदि वह गरीब व्यक्ति यदि कभी उन व्यक्तियों के घरों में खाना माँगने के लिए चले भी जाते, तो यह व्यक्ति गालियाँ निकाल कर के उन्हें बेइज्जत करके घर से निकाल देते हैं। 


👀 Ann Ko Kanooko Koune,

      Roj Maache Dhaadam Dhaad . 

Chhoura Chhouri Ugada Dole,

      Tota Me Rota Ki Raad . 

Ghar Me Oondra Gyaras Kare,

      Natkai Ukhaad Pachhad . 

Dhovti Faad Panjyo Kare,

      Aage Dhaak Faachai Ugaad . 

Dan Raat Kare Yeh Mehanat,

      Fair Bhi Rai Ve Fate Haal . 

Tem Pe Roti Malbo Mousar,

      Asi Garibi Aagi Baal . 

Ameera Soo Door Rai Ve Garibi,

      Gariba Pe Faike Jaal . 

Gariba Ke Ghar Maatho Maare,

      Ya Waane Kar De Kangal . 

Gariba Ne Ya Dhor Nachove,

      Kasyaa Gale Waanki Daal . 

Satya Ka Sarap Chhai Yeh,

      Ya Karma Ki Tedhi Chaal . 

Koya Ka To Man Ee Beri,

      Koya Ke Roti Na Daal . 

Ameera Ke Satras Bhojan,

      Bhookha Deenya Ko Lal . 

Krishn Sa Sakha Sudama Ka,

      Pariwar Ko Baro Haal . 

Bhikshavritti Soo Pariwar Paale,

      Roti Maange Baal Gopal . 

Garibi Ne Ghano Naach Nachayo,

      Aansooda Soo Bhijya Gaal . 

Teen Mutti Chanwal Ler Chaalya,

      Krishn Ki Aankhya Lal . 

Ghana Anadar Kare Ann Ko,

      Fainke Bhar Bhar Thaal . 

Koyaa Ne Bharpet Male Na Roti,

      Moonda Soo Khade Gaal ..   


👉 हमें आशा है कि आपको ऊपर दी गयी कविता को पढ़कर के समझ में आ गया होगा कि हमारे देश में गरीबी, बेचारे गरीब व्यक्तियों को कितना अधिक परेशान करती है। अतः इस कविता से यही निष्कर्ष निकलता है कि हम यदि गरीब व्यक्तियों के दुःखों को कम नहीं कर सकते तो उनमें गालियाँ निकाल कर के तथा उन्हें बेइज्जत करके उनके दुःखों को ओर अधिक नहीं बढ़ाना चाहिए व हमसे जितनी मदद हो सके उतनी हमें गरीब व्यक्तियों की मदद अवश्य करनी चाहिए। 👈 

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