इस Blog में दी गयी कविता India population-growth पर कविता|Poem on indian population growth in hindi के माध्यम से कवि हमें जनसंख्या वृद्धि के चलते बढ़ती महंगाई के कारण आने वाली परेशानियों से हम सभी को अवगत करवाना चाहते हैं। तो आइये इस Blog को पढ़ना शुरू करते हैं।
काकी तो कांकड़ी क मान,
छौरा छौरी होग्या मनमांन।
काकी क आया कंठ म प्राण,
कमजोरी म लागे सबको डांव।
महंगाई बैरण खींचे म्हांका कान,
छौरो रूंसे खड़बूजा क खांण।
अर्थ : कवि इन पंक्तियों के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि के कारण गरीब व्यक्तियों के जीवन में प्रतिदिन आने वाली नई-नई परेशानियों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि किसी गरीब व्यक्ति की पत्नी ( काकी ) तो शरीर से मोटी हो गयी, और इसी के साथ-साथ उसके संतान भी बहुत सारी हो जाती है। जिसके कारण वह उनका ठीक से लालन-पालन भी नहीं कर पाती है क्योंकि एक तो उसको गरीबी सताती रहती है और दूसरा उसके किसी भी कार्य में उसका शरीर साथ साथ नहीं देता।
कुछ समय बाद काकी ( गरीब व्यक्ति की पत्नी ) की तबियत ओर भी अधिक ख़राब हो जाती है, और वह दिन प्रतिदिन कमजोर ही होती चली जाती है। फिर महंगाई के चलते उसकी इतनी भी क्षमता नहीं रहती की वह ठीक तरह से अपना खयाल रख सके।
उन्हें तो प्रतिदिन देश में बढ़ती महंगाई नए-नए तरीकों द्वारा सताती रहती है, ऐसे में यदि कभी उन व्यक्तियों के बच्चे खरबूजे के लिए जिद करने लगे। तो फिर बेचारे वह व्यक्ति महंगाई के कारण अपने बच्चे की इस छोटी से इच्छा को भी पूरी नहीं कर पाते और अपना मन मानकर अपनी भावनाओं को छिपा लेते हैं।
खुद का घर फंगत्या न ढकांण,
औलाद पाळबा म आवे पांण।
कराया क घर म खड़े जमारौ,
सपनों दीखे खुद को मकान।
घर म अन्न को कणूंको न धान,
बार थ्वार प कस्या पकवान।
अर्थ : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि हमें बताते हैं कि जनसंख्या वृद्धि के कारण व देश में बढ़ती महंगाई के चलते बेचारे गरीब व्यक्ति ना तो अपने घरों में सीढ़ियाँ लगा पाते हैं और ना ही वह छत डलवा पाते हैं अर्थात महंगाई के चलते गरीब व्यक्तियों को अपना जीवन झोपड़ियों में ही व्यतित करना पड़ता है, और फिर ऐसे में वह दो से ज्यादा बच्चों को पैदा कर लेते हैं। जिसके कारण उन्हें पालने में उन्हें बहुत बढ़ी-बढ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
दूसरी पंक्ति के द्वारा कवि उन व्यक्तियों के बारे में बताना चाहते हैं जो निम्न मध्यम वर्गीय श्रेणी में आते हैं। कवि बताते हैं कि ऐसे व्यक्तियों का पूरा जीवन किराये के मकानों में ही निकल जाता है, और ऐसे में उन्हें खुद का मकान लेना तो जैसे एक बहुत बढ़े सपने को पूरा करना हो, ऐसा लगने लगता है।
तीसरी पंक्ति में कवि झोपड़ियों में रहने वाले गरीब व्यक्तियों के जीवन के बारे में बताते हुए कहते हैं कि महंगाई के चलते बेचारे गरीब व्यक्तियों के घरों में ना तो अन्न का कोई दाना रहता है और ना ही खाने के लिए कोई धान जिसे खाकर वह अपना पेट भर सके, तथा बेचारे इन गरीब व्यक्तियों को तो त्यौहारों के अवसर पर भी खाने के लिए कोई पकवान नसीब नहीं हो पाता।
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India population- growth पर कविता |
भूखा छौरा-छौरी रोटी मांगे,
घर म रोजीना घमसांण।
हारी बीमारी की कांईं खैणीं,
यह नाळी पीवे प्रांण।
पेट भर खाबो मले न पीबो,
छौरा छौरी तरसे लत्तां खांण।
अर्थ : कवि बताते हैं कि गरीब व्यक्तियों के घरों में इतने सारे बच्चे होते हैं कि फिर उनके माता-पिता उन सभी बच्चों को समय पर दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं करवा पाते हैं ऐसे में यदि वह बच्चे अपने माता-पिता से खाने के लिए रोटी माँग लेते हैं, तो फिर उनके घरों में प्रतिदिन इसी बात को लेकर बहस छिड़ना शुरू हो जाती है।
इस परिस्थिति में इन गरीब व्यक्तियों को यह डर अलग से सताता रहता है कि कहीं उनके परिवार का कोई सदस्य बीमार हो गया तो वह उसका इलाज कैसे करवा पायेंगे। परन्तु बीमारी का तो कुछ कहा नहीं जा सकता यह तो कभी भी किसी भी व्यक्ति को लग सकती है।
फिर ऐसे में इन गरीब व्यक्तियों को ना तो प्रतिदिन भरपेट खाना मिल पाता है और ना ही पीने के लिए शुद्ध पानी, इनके बच्चे अलग कपड़ों के लिए तरसते रहते हैं परन्तु उनके माता-पिता अपने बच्चों को कपड़े तक नहीं दिलवा पाते क्योंकि अगर इनके एक या दो ही बच्चे होते तो शायद यह उन्हें कम से कम दो वक्त का खाना और पहनने के लिए कपड़े तो नसीब करवा पाते।
सुरसां की नांईं मूंडो फाड़े,
बेराजगारी म कोड़ी न छदाम।
पढ़ाई लिखाई मांडा ब्याव,
यांनैं निभाणों कोइनें आसान।
छौरा छौरी सब कंवारा डोले,
घर की बगड़े सगळी सान।
अर्थ : जनसंख्या वृद्धि व गरीबी के कारण यह व्यक्ति ऐसे ही परेशान होते रहते हैं, और जनसंख्या वृद्धि के कारण लोगों को रोजगार अलग नहीं मिल पाता। क्योंकि नौकरी अगर एक है तो उसे पाने वाले सो ( 100 ) लोग।
यदि हमारे बच्चे ज्यादा होते हैं तो फिर ऐसे में ना तो हम अपने बच्चों को ठीक से पढ़ा पाते हैं और ना ही उनकी धूम-धाम से शादी करवा पाते हैं, क्योंकि जनसंख्या वृद्धि कारण देश में गरीबी ही इतनी अधिक बढ़ गयी है कि जिसके कारण गरीब व्यक्ति तथा मध्यम वर्गीय व्यक्ति अपनी इन इच्छाओं या जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पाते।
यदि बच्चे ज्यादा होते हैं तो ऐसे में माता-पिता भी अपने सभी बच्चों की शादी नहीं करवा पाते हैं जिसके चलते बेचारे उन बच्चों को कुँवारा रहकर ही अपना जीवन बिताना पड़ता है, और इसके कारण उनके घर की सारी शान और मान मर्यादा भी मिट्टी में मिल जाती है।
डेढ़ लाख करोड़ होबा म आया,
भारत म आपण जजमान।
चंता छोड़ अब चिंतन करां सब,
जनसंख्या प लगावां लगाम।।
अर्थ : कवि कहते हैं कि अब तो हमारे देश भारत में जनसंख्या लगभग डेढ़ लाख करोड़ या 150 करोड़ तक पहुँचने वाली है।
ऐसे में हमें गरीबी की चिंता को छोड़कर के अब इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हम देश में लगातार बढ़ती जनसंख्या को कम कैसे करे।
👀 Kaaki To Kaakdi Ke Maan,
Chhoura Chhouri Hogya Manmaan .
Kaaki Ke Aaya Kanth Ma Pran,
Kamjori Me Laage Sabko Daav .
Mahangai Bairan Kheenche Mhaka Kaan,
Chhouro Roose Khadbooja Ke Khaan .
Khud Ke Ghar Ke Fangtya Na Dhakaan,
Aulad Paalba Me Aave Paan .
Karaya Ke Ghar Me Khade Jamarou,
Sapno Deekhe Khud Ko Makaan .
Ghar Me Ann Ko Kanooko Na Dhaan,
Baar Thvaar Pe Kasyaa Pakwan .
Bhookha Chhoura-Chhouri Roti Maange,
Ghar Me Rojeena Ghamsan .
Haari Bimari Ki Kaai Khaini,
Yeh Naali Peeve Praan .
Pet Bhar Khabo Male Na Peebo,
Chhoura Chhouri Tarse Latta Khaan .
Sursa Ki Naai Moonda Faade,
Berojgari Me Kodi Na Chhadam .
Padhai Likhai Maanda Byav,
Yaanai Nibhano Koine Aasan .
Chhoura Chhouri Sab kanwara Dole,
Ghar Ki Bagde Sagli Saan .
Dedh Laakh Karod Hoba Me Aaya,
Bharat Me Aapan Jajman .
Chanta Chhod Ab Chintan Kara Sab,
Jansankhya Pe Lagava Lagam ..
👉 हमें आशा है कि आपको ऊपर दी गयी कविता को पढ़कर के समझ में आ गया होगा कि देश से बढ़ती जनसंख्या को रोकना कितना अधिक जरूरी है क्योंकि इसे रोका नहीं गया तो यह हमारे देश में गरीबी तथा बेरोजगारी को दिन प्रतिदिन बढ़ाती ही चली जाएगी। जिसके कारण लोगों के भूखे रहने तक की नौबत आ जाएगी।
हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि का ज्यादातर असर गरीब व्यक्तियों में देखा गया है क्योंकि वह व्यक्ति शिक्षित नहीं होते तो वह दो से ज्यादा बच्चों को पैदा कर लेते हैं जिसके कारण बाद में उन्हें ही पछताना पड़ता है। अतः हमें उन व्यक्तियों को किसी सन्देश या किसी प्रोग्राम ( कार्यक्रम ) द्वारा यह बताना चाहिए कि यदि वह इसी तरह से ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करते रहे तो बाद में उन्हें तथा देश को कितना पछताना पड़ सकता है। 👈