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Gandhi jayanti क्यों मनाई जाती है और गाँधी जी द्वारा कौनसे आंदोलन चलाये गये


1. Gandhi jayanti क्यों मनाई जाती है 

आप सभी यह अवश्य जानना चाहेंगे की आखिर गाँधी जयंती क्यों मनाया जाता है और गाँधी जी द्वारा कौनसे आंदोलन चलाये गये जिसका जवाब आपको इस Blog को पूरा पढ़ने पर प्राप्त हो जायेगा। हमारे देश में गाँधी जयंती राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के जन्मदिन के उपलक्ष में मनाई जाती है इस दिन लोगों द्वारा गाँधी जी को श्रद्धांजलि दी जाती है और हर्षोल्लास के साथ देश भक्ति के गीत गाते हुए इस दिन को Celebrate किया जाता है। महात्मा गाँधी जी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नेता थे उन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलकर ब्रिटीश शासन से हमारे देश भारत को आजादी दिलाई थी। 

महात्मा गाँधी ने भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता ( आजादी ) दिलाने के लिए पूरे जीवन भर संघर्ष किया और अंततः उन्होंने भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता दिलाई। वे अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए सभी लोगों को प्रेरित करते थे क्योंकि उनका मानना था कि यदि हिंसा ( लड़ाई/झगड़े ) करके देश को आजादी दिलाई गयी तो इससे देश को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा और कईं देश वासियों को अपनी जान भी गवानी पड़ेगी, जो कि उन्हें कतई मंजूर नहीं था। गाँधी जयंती 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस भी मनाया जाता है। 5 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र सभा द्वारा 2 अक्टूबर को अंतराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाना घोषित किया गया। 

गाँधी जयंती के दिन लोग राजघाट, नई दिल्ली में गाँधी जी की मूर्ति के सामने उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं और उनकी समाधी पर राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री की उपस्थिति में प्रार्थना आयोजित की जाती है। इस दिन के दिन सभी स्कूलों व कोलेजों में राष्ट्रीय अवकाश रहता है। गाँधी जयंती के दिन प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति व अन्य लोगों के द्वारा गांधी जी का पसंदीदा गीत " रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान "गाया जाता है। महात्मा गांधी की देश के प्रति त्याग व समर्पण की भावना को देखते हुए उनके जन्मदिन को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। 

इस Blog में हम निम्न Topics पर चर्चा करेंगे - 

1. गाँधी जयंती क्यों मनाई जाती है 
2. गाँधी जयंती कब मनाई जाती है 
3. महात्मा गाँधी जी की Biography in hindi  
4. गाँधी जी द्वारा चलाये गए आंदोलन 
5. गाँधी जयंती पर कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु  

Gandhi jayanti क्यों मनाई जाती है
Gandhi jayanti क्यों मनाई जाती है

2. गाँधी जयंती कब मनाई जाती है

हमारे देश भारत में प्रतिवर्ष 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी जी के जन्मदिन को ग़ांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर जिले में हुआ था। 

गाँधी जयंती कब मनाई जाती है
2 October-Gandhi jayanti

3. महात्मा गाँधी जी की Biography ( जीवन कथा ) in hindi    

हमारा देश वर्तमान में पूर्ण रूप से स्वतंत्र ( आजाद ) है परन्तु क्या आपको पता है कि हमारे देश को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने के लिए कितने लोगों ने बलिदान दिया था। तो आज हम उनमें से ही एक व्यक्ति की जीवन कथा के बारे में चर्चा करेंगे। जिसने हमारे देश को आजादी दिलाने के लिए अपने पूरे जीवन को देश के प्रति समर्पित कर दिया जिसका नाम है " महात्मा गाँधी "

महात्मा गांधी जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर जिले में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ। उनके पिता का नाम करम चंद गाँधी तथा माँ का नाम पुतली बाई था। गांधी जी के पिता करम चंद गांधी के चार पत्नियाँ थी क्योंकि उनकी दो पत्नियों की मृत्यु काफी जल्दी हो गयी थी। इस कारण से गांधी जी के पिता ने दो ओर शादियां कर ली थी और महात्मा गांधी करम चंद गांधी की चौथी पत्नी पुतली बाई के बेटे थे। 

Mahatma  gandhi-biography
Mahatma  gandhi-biography


पहले के समय में पिता का नाम स्वयं के नाम के साथ जोड़ा जाता था इस कारण से महात्मा गांधी का पूरा नाम "मोहनदास करमचन्द गाँधी पड़ा"। जन्म के कुछ साल बाद ही गांधी जी का पूरा परिवार राजकोट में रहने लगा जहाँ से गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा आरंभ हुई। बचपन से ही गांधी जी पढ़ाई में अधिक बुद्धिमान थे और वह किताब पढ़ने में अपना अधिक समय व्यतित करना पसंद करते थे। फिर कुछ साल बाद 13 साल की उम्र में उनकी शादी उनसे उम्र में 1 साल बढ़ी लड़की कस्तूरबा से हो गयी। 

फिर जब वह 15 साल के हुए तो उनके पिता का भी निधन ( मृत्यु ) हो गया और पिता की मृत्यु के 1 साल बाद ही गांधी जी के एक संतान भी हो गयी। लेकिन दुर्भाग्यवश जन्म के कुछ समय पश्चात् ही उस संतान की मृत्यु हो गयी जिसके कारण गांधी जी पूरी तरह से टूट चुके थे। फिर कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए सन् 1887 में गांधी जी ने अहमदाबाद से अपनी माध्यमिक शिक्षा पूर्ण की और फिर कोलेज की पढ़ाई करने के पश्चात् गांधी जी कानून ( Law ) की पढ़ाई करने के लिए लंदन ( London ) चले गये जहाँ से तीन साल बाद वह Law की पढ़ाई पूरी करके भारत लोट आए। 

विदेश में पढ़ाई करने के बावजूद भी गांधी जी को भारत में आसानी से नौकरी नहीं मिली। फिर 1893 में उन्हें दादा अब्दुल्लाह एण्ड कम्पनी नाम की एक भारतीय कम्पनी में Job मिली। जिसके लिए उन्हें दक्षिण अफ्रीका ( South Africa ) जाना पड़ा जहाँ पर उनके साथ भेदभाव किया गया। जिसके कारण से उनके मन में भेदभाव को ख़त्म करने और भारत देश को आजाद कराने की भावना जाग्रत हुयी और फिर गांधी जी 20 साल तक आम लोगों के हित के लिए दक्षिण अफ्रीका में लड़ते रहे। 

फिर गोपाल कृष्ण गोखले ( कांग्रेस नेता ) ने गांधी जी से कहा कि वह भारत वापस आयें और वहाँ के लोगों को आजादी दिलाये। तब देश को आजादी दिलाने के लिए गांधी जी सन् 1915 में भारत वापस आ गए और यहाँ आकर उन्होंने भारतीय कांग्रेस दल को Join कर लिया और देश को आजादी दिलाने में अपना सहयोग देना शुरू कर दिया तथा कुछ सालों के अंदर ही वह अपनी त्याग, समर्पण व देश हित के प्रति भावना के चलते वह भारतीय लोगों के चहिते बन गये। 

उन्होंने देश में से भेदभाव को खत्म करने तथा लोगों के मन में से अंग्रेजों के डर को खत्म करने का कार्य किया व अंग्रेजों द्वारा भारतीय लोगों पर किये जाने वाले शोषण से उन्होंने भारतीय लोगों को छुटकारा दिलाया। जिसके कारण उन्हें कईं बार जेल भी जाना पड़ा और उन्होंने कईं तरह के सत्याग्रह या आंदोलन भी चलाये। बाद में गांधी जी द्वारा भारतीय लोगों के दिलों में लगाई गयी चिंगारी के कारण अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा और फिर इस तरह से भारत देश 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजाद हो पाया। 

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी जिसके कारण पूरा देश शोक में डूब गया। फिर 15 नवंबर 1950 को गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी दे दी गयी।

गांधी जी जब तक जीवित रहे तब तक वह अहिंसा को ही अपना हथियार मानते रहे और सत्य तथा देशभक्ति की राह पर चलकर उन्होंने देश को आजादी दिलाई। हालाँकि आज हमारे बीच में गांधी जी नहीं रहे परन्तु आज भी उन्हें याद किया जाता है और उनके अहिंसा के मार्ग का अनुसरण किया जाता है। 



4. गाँधी जी द्वारा चलाए गए आंदोलन  

महात्मा गांधी जी द्वारा सन् 1917 से 1942 तक मुख्य रूप से 7 तरह के आंदोलन/सत्याग्रह चलाये गए थे जो निम्न प्रकार से हैं -
1. चम्पारण सत्याग्रह 
2. खेड़ा सत्याग्रह 
3. अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन 
4. खिलाफत आंदोलन 
5. असहयोग आंदोलन 
6. नमक आंदोलन/सविनय अवज्ञा आंदोलन 
7. भारत छोड़ो आंदोलन 

1. चम्पारण सत्याग्रह 

चम्पारण सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा चलाया जाने वाला पहला आंदोलन था। यह सत्याग्रह अप्रेल 1917 में बिहार के चम्पारण जिले से शुरू हुआ था। आजादी से पहले अंग्रेजों के शासन काल के समय अंग्रेजों द्वारा भारतीय किसानों से जबरदस्ती नील ( Indigo ) की खेती करवाई जाती थी क्योंकि अंग्रेज सरकार को नील की खेती से ज्यादा लाभ हो रहा था क्योंकि नील का इस्तेमाल उस समय डाई आदि बनाने में किया जाता था और उस समय डाई अधिक बिकती थी। इस कारण से अंग्रेज सरकार भारतीय किसानों को पारंपरिक खेती नहीं करने देते थे। 

अंग्रेजी सरकार ने तो यह कानून तक लागू कर दिया कि प्रत्येक चम्पारण के भारतीय किसान को अपनी जमीन के 3/20 भाग में नील की खेती करनी होगी जिसे तीन कठिया पद्धति भी कहा जाता है। जबकि भारतीय किसान नील की खेती नहीं करना चाहते थे क्योंकि नील की खेती करने से उनकी जमीन बंजर हो जाती थी फिर उनकी जमीन पर अन्य फसलें नहीं उग पाती थी। और नील को बेचने पर भी किसानों को काफी कम दाम मिलता था क्योंकि नील को खरीदने वाले भी ब्रिटिश सरकार के ही व्यक्ति थे जो किसानों को बहुत घटिया दाम देते थे। 

दूसरा कारण यह था कि अंग्रेजों द्वारा नील की खेती करने के लिए किसानों को लोन पर पैसे दे दिये जाते थे और फिर बाद में उनसे इतना अधिक ब्याज वसूला जाता था कि जिसे गरीब किसान चूका ही नहीं पाते थे। जिसके कारण चम्पारण के किसानों के ऊपर अंग्रेजों द्वारा शोषण हो रहा था और उनके ना चाहने पर भी किसानों को नील की खेती करनी पड़ती थी। क्योंकि यदि वह नील की खेती करने से मना कर देते थे तो अंग्रेजों द्वारा उन गरीब किसानों की जमीन को छीन लिया जाता था तथा उन्हें कईं तरह की प्रताड़नाएँ दी जाती थी। 

अंग्रेजों द्वारा चम्पारण के किसानों पर हुए जाने वाले शोषण को देखते हुए चम्पारण के एक व्यक्ति राजकुमार शुक्ला ने गांधी जी से कहा कि वह चम्पारण आए और वहाँ के किसानों को शोषण से मुक्त करवाए। तब अप्रैल 1917 में गांधी जी चम्पारण जाने के लिए निकल जाते हैं। जैसे ही वह मोतिहारी रेलवे स्टेशन ( चम्पारण ) पर पहुँचते हैं तो वहाँ उनसे मिलने के लिए भारी मात्रा में किसानों की भीड़ आ जाती है। 

जिसके कारण वहाँ की अंग्रेज सरकार गांधी जी को वापस भेजने के बारे में सोचती हैं जिसके लिए वह पुलिस सुप्रिटेंडेंट द्वारा गांधी जी को वापस उनके स्थान पर छोड़कर आने का आदेश दे देती है। परन्तु गांधी जी उनके आदेश को ठुकरा देते हैं। फिर अगले दिन गांधी जी को अंग्रेज सरकार द्वारा कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश दे दिया जाता है तो जब गांधी जी कोर्ट में हाजिर होते हैं तो वहाँ किसानों की भारी भीड़ आ जाती है। 

जिससे घबराकर मजिस्ट्रेट गांधी जी को बिना जमानत के ही छोड़ देते हैं तब गांधी जी मजिस्ट्रेट से किसानों पर हुए शोषण के लिए अंग्रेज लोगों के लिए सजा या मुआवजा ( पैसे ) देने की मांग करते हैं। तब मजिस्ट्रेट ने घोषणा करी कि अंग्रेज व्यक्ति भारतीय किसानों को अवैध वसूली का 25% हिस्सा वापस करेंगे। बाद में सभी किसानों को उनका 25% हिस्सा वापस मिल गया और जब चम्पारण आंदोलन सफल हुआ तो रविंद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को महात्मा की उपाधि से सम्मानित किया। तभी से गांधी जी को महात्मा गाँधी कहा जाने लगा।     


2. खेड़ा सत्याग्रह     

खेड़ा सत्याग्रह महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में सन् 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था। अंग्रेजों द्वारा खेड़ा जिले के भारतीय किसानों से अधिक से अधिक कर ( Tax ) वसूला जाता था। तो भारतीय किसान जैसे-तैसे करके कर को चूका दिया करते थे परन्तु सन् 1899 में अकाल और महामारियों के दौर के कारण भारतीय किसानों का अंग्रेजों को कर चुकाना बहुत कठिन हो गया और सन् 1917-18 ईश्वी में सूखे जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो गयी। 

जिसके कारण फसलों का उत्पादन सामान्य स्तर से एक चौथाई ( 100% से 25% ) पर आ गया। जिसके चलते किसान बिल्कुल भी लगान देने की स्थिति में नहीं थे परन्तु फिर भी अंग्रेजों द्वारा भारतीय किसानों से लगान ( Tax ) वसूला जा रहा था। जबकि राजस्व संहिता के अनुसार यदि फसल का उत्पादन एक चौथाई ( 25% ) से कम हो, तो किसानों का राजस्व ( कर ) पूरी तरह से माफ कर देना चाहिए परन्तु इसके बावजूद भी अंग्रेज लोग अवैध रूप से किसानों से कर की वसूली कर रहे थे। 

जिसके कारण खेड़ा सत्याग्रह प्रारंभ हुआ। खेड़ा सत्याग्रह के दौरान गांधी जी और उनके सहभागियों ने घर-घर जाकर किसानों को जागरूक करवाया कि वह अंग्रेज सरकार को कोई कर ना दे। परन्तु उस समय भारतीय किसानों को अंग्रेजों से डर भी लगता था ओर उन्हें लग रहा था कि इस वर्ष रबी की फसल अच्छी हो जाएगी जिसके चलते यदि कर माफ़ भी नहीं हो पाता है तब भी वह कर दे देंगे। 

तब गांधी जी ने यह घोषणा करी कि यदि अंग्रेज सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर देती है तो अमीर किसान तथा सक्षम किसान ( जिनके फसल की खेती अच्छी हुई है ) अपनी इच्छा से लगान दे देंगे। इस आंदोलन में विट्ठल भाई पटेल, इंदुलाल, याज्ञनिक, वल्लभ भाई पटेल, महादेव देसाई तथा गणेश मावलंकर ने गांधी जी का साथ दिया था। तब ब्रिटिश सरकार भी गाँधी जी के आन्दोलनों से थोड़ा घबराती थी। 

तो ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी की बात मान ली कि वह उन्हीं किसानों से कर वसूलेगी जो कर देने में सक्षम हो, तब ब्रिटिश सरकार अपने अधिकारियों द्वारा गुप्त रूप से यह घोषणा करवा देती है कि वह केवल उन्हीं किसानों से कर वसूलेगी जो कर देने में सक्षम हैं। बाद में इस आंदोलन के चलते गरीब किसान कर वसूली के शोषण से मुक्त हो गये। 


3. अहमदाबाद मिल मजदुर आंदोलन      

अहमदाबाद मिल मजदुर आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी द्वारा किया गया था। यह आंदोलन गुजरात के अहमदाबाद शहर में 15 मार्च 1918 को शुरू हुआ। अंग्रेजी शासन काल के दौरान अहमदाबाद में कपास का उत्पादन अधिक मात्रा में किया जाने लगा तथा इसके साथ-साथ अन्य कईं प्रकार के उध्योग भी अंग्रेजों द्वारा चलाये जा रहे थे। तब सन् 1917 में अहमदाबाद में प्लेग नामक बीमारी फेल गयी और धीरे-धीरे यह बीमारी पूरे अहमदाबाद शहर में फेल गयी। 

जिसके प्रकोप के चलते अहमदाबाद को छोड़कर श्रमिक वर्ग ( महदूर ) अन्य जिलों में जाने लगे। तब मजदूरों द्वारा फेक्ट्रियां छोड़ देने के कारण फेक्ट्रियों द्वारा किये जाने वाले उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ा अर्थात उत्पादन कम होने लगा। पर्याप्त मात्रा में उत्पादन नहीं होने के कारण फेक्ट्री मालिकों के धन्धे लगभग रुक से गए तब फेक्ट्रियों के मालिकों ने मजदूरों को फेक्ट्री छोड़कर जाने से रोकने के लिए प्लेग बोनस देने का वादा किया। 

जब यह बोनस मजदूरों तक नहीं पहुँचा तो मजदूर वर्ग के बीच प्लेग बोनस को लेकर संघर्ष की स्तिथि उत्पन्न हो गयी क्योंकि फेक्ट्री के मालिक चाहते थे कि मजदूरों को केवल 20%  ही प्लेग बोनस दिया जाये परन्तु मजदूर लोग चाहते थे कि उन्हें 35% तक प्लेग बोनस मिले। इस बात को लेकर मजदुर हिंसा करने के लिए तैयार हो गए। तब गांधी जी ने मजदूरों को सलाह दी कि वह अहिंसात्मक ढंग से अपनी हड़ताल करे। 

कुछ समय बाद गांधी जी भी स्वयं इस आंदोलन में मजदूरों के साथ जुड़ जाते हैं और वह मजदूरों के साथ आमरण भूखहड़ताल पर उतर गये तब इस आंदोलन में अनुसूइया साराभाई ने गांधी जी का साथ दिया जिन्होंने दैनिक समाचार पत्र में इस आंदोलन का प्रकाशन ( Article लिखा ) किया। तब मजदूरों और गांधी जी के आमरण भूखहड़ताल अनशन को देखते हुए फेक्ट्रियों के मालिकों ने आंदोलन के कुछ दिन बाद मजदूरों को 35% प्लेग बोनस देने की मांग को मंजूरी दे दी। 


4. खिलाफत आंदोलन   

 यह मुसलमानों द्वारा चलाया गया धार्मिक राजनैतिक आंदोलन है जो 24 नवंबर 1919 से प्रारंभ हुआ तथा 1924 तक चला। सन् 1914 से 1919 तक पहला विश्व युद्ध चला जिसके कारण कईं देश दो अलग-अलग दलों में विभाजित हो गये। जिसमें एक ओर ब्रिटेन, फ्रांस, इटली आदि देश थे तथा दूसरी तरह जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और तुर्की आदि देश थे। जब 1919 में यह विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो उस समय तुर्की ( Turkey ) पर आटोमन साम्राज्य का शासन चल रहा था और तुर्की इस युद्ध में हार चुका था। 


जिसके कारण ब्रिटेन ने तुर्की पर दबाव बनाकर वहाँ के आटोमन साम्राज्य ( तुर्की देश ) का विभाजन कर दिया और विभाजन के साथ-साथ तुर्की का एक शासन कमाल पासा जिसे खलीफा की उपाधी के रूप में देखा जाता था उसे भी ब्रिटेन ने ठेस पहुँचायी। इसका यह दुष्प्रभाव पड़ा कि जो भारतीय मुस्लिम थे वह ब्रिटेन के विरुद्ध हो गये जिसके कारण भारत में खिलाफत आंदोलन प्रारंभ हुआ। शुरुआत में 31 अगस्त 1919 को मोहम्मद अली व शौकत अली नाम के दो मुस्लिम भाइयों ने ब्रिटिश सरकार से मांग की कि वह तुर्की का विभाजन ना करे और खलीफा पद की पुनर्स्थापना हो परन्तु ब्रिटिश सरकार ने ऐसा नहीं किया। 


फिर मोहम्मद अली व शौकत अली के नेतृत्व में दिल्ली में सितंबर 1919 में अखिल भारतीय खिलाफत कमेठी का गठन किया गया। बाद में 17 अक्टूबर 1919 को खिलाफत दिवस मनाया गया। जब ब्रिटिश सरकार मुसलमानों की मांग को स्वीकार नहीं करती है तब मोहम्मद अली व शौकत अली महात्मा गांधी जी से निवेदन करते हैं कि वह खिलाफत आंदोलन में मुसलमानों का साथ दे क्योंकि उस समय महात्मा गांधी अपने आंदोलनों की सफलता के चलते अधिक प्रचलित हो चुके थे और वह किसी भी जाती के साथ कोई भेदभाव नहीं करते थे। 


तब गांधी जी मुसलमानों का साथ देने के लिए तैयार हो जाते हैं फिर 24 नवम्बर 1919 को दिल्ली में अखिल भारतीय खिलाफत आंदोलन प्रारंभ होता है जिसकी अध्यक्षता गांधी जी द्वारा की जाती है तथा मौलाना अबुल कलाम आजाद, जफर अली खां, हकीम अजमल खां, डॉ. मुख्तार अंसारी आदि नेताओं ने उस समय खिलाफत आंदोलन में अपना सहयोग दिया। तब इस आंदोलन का प्रचार मौलाना अबुल कलाम आजाद ने समाचार पत्र ( News Paper ) अल हिलाल में प्रकाशन देकर ( Article लिखकर ) किया तथा मोहम्मद अली ने भी कामरेड समाचार पत्र में Article लिखकर इस आंदोलन का प्रचार-प्रसार किया। 


जून 1920 तक खिलाफत आंदोलन सामान्य रूप से चला परन्तु इसके बाद 20 जून 1920 को इलाहबाद की बैठक में यह तय गया कि वह अब असहयोग आंदोलन करेंगे। तब महात्मा गांधी जी ने सभी मुस्लिम नेताओं से कहा कि वह 1 अगस्त 1920 से सरकारी कार्यों के लिए असहयोग करें। उन्होंने कहा कि आज से ही सभी मुस्लिम ना तो न्यायालय जायेंगे, ना किसी सरकारी सम्पत्ति का उपयोग करेंगे और ना कोई सरकारी कार्य करेंगे। 


फिर उसी दिन 1 अगस्त 1920 को बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो जाती है जिसके कारण हिन्दू-मुस्लिम इस स्वतंत्रता के आंदोलन से जुड़ गये। कुछ महीनों या सालों तक खिलाफत आंदोलन तथा असहयोग आंदोलन दोनों साथ-साथ चले परन्तु कुछ समय पश्चात् असहयोग आंदोलन अधिक प्रभावी होने के कारण खिलाफत आंदोलन कमजोर होता चला गया और अंततः तुर्की में मुस्तफा कमालपासा के नेतृत्व में क्रांति होने के कारण खलीफा के पद को समाप्त कर दिया गया जिससे खिलाफत आंदोलन अपने आप ही समाप्त हो गया और तुर्की के विभाजन को भी मुसलमानों ने स्वीकार कर लिया। 

5. असहयोग आंदोलन       

यह आंदोलन 1920 में शुरू हुआ और 1922 तक चला तथा इस आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी जी ने किया। असहयोग आंदोलन भारत का पहला ऐसा आंदोलन है जो राष्ट्रीय लेवल अर्थात पूरे भारत में चला। इस आंदोलन के शुरू होने के पीछे प्रमुख चार कारण थे -
( a ). जलियावाला बाग हत्याकाण्ड 
( b ). रोलेट एक्ट 
( c ). प्रथम विश्व युद्ध की नीतियाँ 
( d ). किसानों पर अत्याचार 


( a ). जलियावाला बाग हत्याकाण्ड 

यह हत्याकाण्ड सन् 1919 में पंजाब के अमृतसर जिले में हुआ। पंजाब के अमृतसर शहर में एक बाग था जिसका नाम जलियावाला बाग था। उस बाग में कुछ भारतीय लोग शांतिपूर्ण ढंग से एक Meeting कर रहे थे। तब उस सभा में एक अंग्रेज Officer जनरल डायर द्वारा उन व्यक्तियों पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दी गयी। जिसके कारण उस सभा ( Meeting ) में मौजूद हजारों लोगों की मृत्यु हो गयी क्योंकि बाग के सारे दरवाजे बन्ध कर देने के कारण वह लोग भाग ही नहीं पाये जिसके चलते उन्हें अपनी जान गवानी पड़ी। इस घटना के कारण भारत के लोगों के मन में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना जाग्रत हो गयी। 

( b ). रोलेट एक्ट    

रोलेट एक्ट एक कानून का नाम है जो कि सन् 1919 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था, इसे मार्शल लॉ भी कहा  जाता है तथा भारतीय लोगों ने इसे काला कानून नाम दिया। क्योंकि इस कानून के अंतर्गत भारतीय लोगों को बिना मुकदमा चलाये ही सजाए मौत दे दी जाती थी जो कि बहुत गलत था। 

( c ). प्रथम विश्व युद्ध की नीतियाँ   

प्रथम विश्व युद्ध सन् 1914 से 1918 तक चला। इस विश्व युद्ध में अंग्रेज चाहते थे कि भारतीय लोग उनका साथ दे तथा भारतीय सिपाही युद्ध में उनके साथ लड़े। तब भारतीय सैनिक एक शर्त पर युद्ध में अंग्रेजों का साथ देने के लिए राजी हो गये और वह शर्त थी कि विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद अंग्रेजों को भारतीय लोगों के अधिकार वापस देने होंगे तथा कर आदि में छूट देनी होगी। परन्तु विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद अंग्रेजों ने अपनी शर्त पूर्ण नहीं की, जिसके कारण भारतीय लोगों के मन में अंग्रेजों के प्रति विरोध की भावना ओर अधिक बढ़ गयी। 

( d ). किसानों पर अत्याचार   

भारतीय किसानों से अंग्रेजों द्वारा अत्यधिक कर वसूला जाता था तथा उन्हें उनके मन मुताबिक खेती नहीं करने देते थे। जिसकी वजह से सभी किसान परेशान थे। 

खिलाफत आंदोलन का भी असहयोग आंदोलन के पीछे एक कारण था। इस कारण से खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन दोनों साथ-साथ चले। 

असहयोग आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग न करके उनकी कार्यवाही और उनके कार्य में बाधा उत्पन्न करना था। इस आंदोलन में " 1 वर्ष में स्वराज " आदि नारे लगाए गये। 1 अगस्त 1920 को कलकत्ता से असहयोग आंदोलन शुरू हुआ फिर 4 सितंबर 1920 को कांग्रेस कलकत्ता अधिवेशन होता है जिसके अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे। 

असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी स्कूल व कॉलेजों का त्याग किया गया, विदेशी वस्तुओं का त्याग किया गया, विदेशी वस्तुओं को जलाया गया, सरकारी उपाधियों का त्याग किया गया तथा वकालत आदि का त्याग किया गया। 

सरकारी उपाधियों का त्याग करने वाले व्यक्ति : महात्मा गांधी को अंग्रेजों द्वारा केशर-ए-हिन्द की उपाधी दी गयी थी जिसका गांधी जी ने त्याग कर दिया तथा जनरल बजाज द्वारा राय बहादुर की उपाधी का त्याग किया गया। 

वकालत का त्याग करने वाले व्यक्ति : मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, विट्ठल भाई पटेल, देशबंधु चित्रंजन दास, लाला लाजपत राय आदि द्वारा असहयोग आंदोलन के लिए वकालत का त्याग किया गया। 

कुछ ऐसे नेता भी थे जिन्होंने असहयोग आंदोलन में समर्थन नहीं दिया था क्योंकि उन्हें असहयोग आंदोलन का तरीका पसन्द नहीं आया जिनमें से कुछ नेता हैं - रविंद्रनाथ टैगोर, मोहम्मद अली जिन्ना, ऐनी बेसेंट, विपिन चंद्र पाल, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, शंकर नायर आदि। प्रारंभ में तो इन सभी नेताओं ने असहयोग आंदोलन का विरोध किया परन्तु बाद में इस प्रस्ताव को पारित कर दिया गया। 

👉 1 अगस्त 1920 को बालगंगाधर तिलक की मृत्यु हो जाती है जिस दिन असहयोग आंदोलन शुरू हुआ था। फिर गांधी जी द्वारा तिलक फण्ड की स्थापना की जाती है जिसमें केवल 6 महीनों में 1 करोड़ का फण्ड इकट्ठा कर लिया जाता है जो असहयोग आंदोलन के दौरान काम में आता है। फिर 5 फरवरी 1922 को बारदोली कांग्रेस बैठक होती है जिसमें चौरा चौरी कांड हो जाता है जिसके चलते असहयोग आंदोलन को समाप्त कर दिया जाता है। 

2 साल तक लगातार असहयोग आंदोलन चला और ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को समाप्त करने के कईं प्रयत्न किये। उन्होंने कईं नेताओं को कईं बार जेल भी भेजा जिसके कारण धीरे-धीरे यह आंदोलन हिंसात्मक होने लगा जो कि गांधी जी को कतई मंजूर नहीं था। इस कारण गांधी जी ने सन् 1922 में इस आंदोलन को पूर्णतः समाप्त कर दिया। 👈

6. नमक आंदोलन/सविनय अवज्ञा आंदोलन           

 इस आंदोलन को नमक या सविनय अवज्ञा आंदोलन या दांडी मार्च ( दांडी सत्याग्रह ) के नाम से भी जाना जाता है। इसका नेतृत्व सन् 1930 में गांधी जी द्वारा किया गया था। अंग्रेजों के शासन काल के समय भारतीय नमक पर अंग्रेजों ने अपना पूर्ण रूप से शासन ( अधिकार ) जमा रखा था। उन्होंने भारतीय नमक के ऊपर कईं प्रकार के कर ( Tax ) लगा रखे थे तथा कईं तरह के कानून लागू कर रखे थे। 

नमक के दाम इतने बढ़ा दिये गये कि आम इंसान अपनी रोजाना की जरुरत के लिए नमक खरीद ही नहीं पा रहे  थे और यदि कोई भारतीय व्यक्ति नमक को इकट्ठा करता, बनाता या बेचता हुआ दिखाई देता तो उसे 6 महीनों की जेल की सजा दे दी जाती थी। यह बात गांधी जी और उनके सहभागियों को अच्छी नहीं लगती है तो वह इस कानून को तोड़ने के बारे में सोचते हैं। 

तब गांधी जी भारत के वायसराय लार्ड डारविन के सामने 11 सूत्रीय माँग रखते हुए नमक कानून को तोड़ने की बात कहते हैं। परन्तु इस प्रस्ताव को लार्ड डारविन स्वीकार नहीं करता है जिसके कारण महात्मा गांधी और उनके साथ 77 सदस्यों ने मिलकर 12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा ( पैदल यात्रा ) शुरू की। जो कि साबरमती आश्रम से दांडी तक पैदल चलने ( 276 K.M ) की थी। 

जब गांधी जी और उनके सहभागी दांडी यात्रा के लिए पैदल चल रहे थे तो रास्ते में उनके साथ उनके इस आंदोलन में अनेक भारतीय लोग जुड़ गये। फिर 5 अप्रैल 1930 को गांधी जी तथा अन्य भारतीय लोग दांडी पहुँचते हैं और उसके अगले ही दिन 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी समुद्र किनारे एक मुट्ठी नमक उठाकर उसे समुद्र में छोड़कर नमक कानून को तोड़ते हैं। 

नमक कानून तोड़ने के कारण अंग्रेजों ने गांधी जी के साथ 80,000 भारतीय लोगों को जेल में डाल दिया। तब गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की तथा इसमें अंग्रेजों के विरुद्ध प्रदर्शन किया गया जो निम्न प्रकार से किया गया -
अंग्रेजों को कर ना देना, सरकारी पद का त्याग कर देना, सरकारी स्कूल व कॉलेजों का बहिष्कार, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, शराब, अफीम तथा गाँजे आदि की दुकानों के समक्ष शांतिपूर्ण ढंग से विरोध करना आदि प्रदर्शन किये गये। सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण अंग्रेज सरकार अंततः नमक कानून को तोड़ने की बात को मंजूरी दे देती है तथा गांधी जी की इस पैदल यात्रा ने अखबारों में खूब सुर्खियाँ बटोरी।   


7. भारत छोड़ो आंदोलन      

यह गांधी जी द्वारा चलाया गया आखिरी आंदोलन है। यह आंदोलन मुंबई में 8 अगस्त 1942 से प्रारंभ हुआ तथा इस आंदोलन में दो प्रमुख नारे भी दिये गये थे पहला " करो या मरो " तथा दूसरा " अंग्रेजों भारत छोड़ो " . इस आंदोलन के शुरू होने के पीछे मुख्य रूप से तीन कारण थे -  

( a ).  पहला कारण क्रिप्स मिशन असफल होना है। क्रिप्स एक Officer था जो 1942 में भारत आया था, जो कि अंग्रेज सरकार और गांधी जी के मध्य कईं तरह के समझोते करवाने के लिए आये थे। जिससे भारतीय लोगों को उनके अधिकार मिल सके तथा अंग्रेज सरकार भारतीय लोगों पर अत्याचार ना करे। परन्तु किसी कारणवश क्रिप्स मिशन असफल हो गया। जिससे मिशन के असफल होते ही गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत कर दी। 

( b ). दूसरा कारण यह है कि गांधी जी तथा अन्य भारतीय व्यक्ति अंग्रेजों से पूर्ण रूप से परेशान हो चुके थे और अब वह उनके अत्याचार सहन नहीं कर सकते थे और वह पूर्ण रूप से अंग्रेजों से भारत की आजादी चाहते थे। इस कारण से उन्होंने इस आंदोलन की शुरुआत की और अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगाया। 

( c ). तीसरा कारण यह है कि 1942 के समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था जिससे इस समय अंग्रेजों के ऊपर दबाव बनाया जा सकता था। 

💨 भारत छोड़ो आंदोलन के तीन ओर नाम भी रखे गये -

( a ). वर्धा प्रस्ताव : इसको वर्धा प्रस्ताव इसलिए कहा जाता है क्योंकि 6 July 1942 को इस प्रस्ताव पर चर्चा की गयी थी और 14 July 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया था जिसे जवाहर लाल नेहरू जी ने प्रस्तुत किया था। 

( b ). अगस्त आंदोलन : भारत छोड़ो आंदोलन अगस्त में शुरू हुआ था जिसके कारण इसे अगस्त आंदोलन कहा जाने लगा। 

( c ). स्वस्फूर्त आंदोलन : भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कांग्रेस के बड़े नेता गिरफ्तार हो जाने के बाद भी यह आंदोलन स्वतः ही चलता रहा जिसकी वजह से इसे स्वस्फूर्त आंदोलन भी कहा जाने लगा। 💨

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन को रोकने के लिए Operation 0 : 0 चलाया गया और 9 अगस्त 1942 की रात को 12 बजे कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। जिन्हें अलग-अलग जेलों में रखा गया -

आगा खां पैलेस : इस जेल  महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी, महादेवी देसाई तथा सरोजनी नायडू को रखा गया। 

अहमदनगर किला : इसमें जवाहर लाल नेहरू, अबुल कलाम आजाद, जे. बी. कृपलानी, पट्टाभि सीतारमैया, डॉ. सैयद महमूद तथा गोविन्द वल्लभ पंथ जी को रखा गया। 

हजारीबाग जेल : इस जेल में जय प्रकाश नारायण को रखा गया। 

बाकीपुर जेल : इस जेल में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी को रखा गया। 

👉 फिर जेल से ही गांधी जी 21 दिन के उपवास की घोषणा कर देते हैं और वह 10 फरवरी 1943 से 21 दिन का उपवास रखते हैं। फिर 6 मई 1944 को गांधी जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण अंग्रेज उन्हें जेल से छोड़ देते हैं। धीरे-धीरे यह आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ जारी रहता है जिसके चलते 15 अगस्त 1947 को भारत को पूर्ण रूप से आजादी मिल पाती है। 👈  


5. गाँधी जयंती पर कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु 

1. वैसे तो गांधी जयंती के दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है और अवकाश होने के कारण हम अपने निजी कार्यों में व्यस्त रहते हैं। हमें इस दिन अन्य कार्य करने के बजाय 5-10 मिनट निकालकर गांधी जी को श्रद्धांजलि अवश्य देनी चाहिए। 

2. हमें अपने जीवन में कभी भी हिंसा के मार्ग को नहीं अपनाना चाहिए। 

3. हमें जीवन में सत्य के मार्ग पर चलते हुए अपने हक के लिए लड़ना चाहिए और यदि कोई व्यक्ति किसी पर अत्याचार करता है तो हमें उसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।   

हमें आशा है कि इस Blog Post को पढ़कर आपको यह पता चल गया होगा कि गाँधी जयंती क्यों मनाया जाता है और गाँधी जी द्वारा कौनसे आंदोलन चलाये गये  👆

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