इस Blog शिक्षक का जीवन किस तरह का हो जाने में कवि हमें एक अध्यापक के जीवन से जुड़ी उसकी जीवनी ( Life ) से अवगत करवाना चाहते हैं तथा साथ ही जो अध्यापक अपने पद का गलत फायदा उठाकर विध्यार्थियों पर अत्याचार करते हैं उनका भी कवि इस कविता के माध्यम से पर्दाफाश करना चाहते हैं।
कुछ पुण्य होंगे पूर्व जनम के,
जिससे मानुष तन पाया है।
मानुष तन पाया जो पाया हमने,
गुरु का ओहदा भी पाया है।
किसी ने जिया शान से इसको,
किसी ने बेकार गँवाया है।
अर्थ : इस कविता या Blog के माध्यम से शिक्षक कहते हैं कि हमने पिछले जनम में जरूर कुछ ना कुछ अच्छे कर्म किये होंगे, जिससे इस जनम में हमें मनुष्य का जीवन मिला है।
मनुष्य का जीवन मिला जो मिला, इसी के साथ एक गुरु का पद भी हमें मिला जो कि हम सभी शिक्षकों के लिए एक बढ़े ही गर्व की बात है।
किसी व्यक्ति ने अपने गुरु के जीवन को बढ़े ही शान के साथ जिया, और किसी-किसी ने तो अपने इस जीवन को तथा गुरु के पद को बेकार ही गवाया है।
गुरूजी से हम शिक्षक कहलाये,
फिर अध्यापक पर आये।
इतने पर भी हम नहीं रुक पाये,
विध्यार्थी मित्र नाम धराये।
विध्यार्थी मित्रों की उपज से हम,
फिर प्रबोधक बन पाये।
अर्थ : अध्यापक कहते हैं कि पहले के समय में तो हम लोगों से गुरू जी कहा जाता था फिर उसके बाद हमें शिक्षक कहा जाने लगा, और अभी के समय में तो हमें अध्यापक कहकर पुकारा जाता है। समय के साथ-साथ हमारे नाम में भी परिवर्तन आ चुका है।
हमारे लिए तो अध्यापक नाम तक ही रुकना ही काफी नहीं था, जिसके चलते हमारे विध्यार्थी मित्र हमें प्यार से अलग-अलग नामों से पुकारने लगे।
हम अपने विध्यार्थियों की वजह से, सभी को ज्ञान से मार्गदर्शित कराने वाले गुरु ( अध्यापक ) बन पाये।
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शिक्षक का जीवन |
अभी चक्कर पूरा कहाँ हुआ है,
शिक्षा सहायक पद आया है।
सब नामों का शोषण खूब हुआ,
अब निजी करण का साया है।
किसी शिक्षक ने तो मान बढ़ाया,
किसी ने रसातल में पहुँचाया है।
अर्थ : अध्यापक कहते हैं कि अभी इतने में ही हमारी जीवन कहानी समाप्त नहीं हुयी है, अभी तो हमने हमारे जीवन में विध्यार्थियों को शिक्षित करने में मदद करने का स्थान पाया है।
दूसरी पंक्ति में शिक्षक कहते हैं कि कुछ व्यक्ति तो अपने नाम का तथा अपने पद का गलत फायदा उठाकर गरीब विध्यार्थियों पर अत्याचार करना चाहते हैं, और अब तो वह सरकारी वास्तु या विध्यालय का अधिकार किसी निजी या प्राइवेट विध्यालय को देने में लगे हुए हैं।
किसी अध्यापक ने तो अपना और अपने विध्यार्थियों का मान बढ़ाया है, और किसी-किसी अध्यापक ने तो अपने नाम का गलत फायदा उठाकर उसे नर्क में ही पहुँचाया है।
बालकों के लिए मेहनत नहीं करना,
गरिमा को धूमिल करता है।
अपने पेशे के प्रति गैर जिम्मेदारी से,
शिक्षक अपना गौरव खोता है।
कदाचार करने वालों गुरुओं को,
समाज अपने ढंग से धोता है।
अर्थ : किसी भी अध्यापक के लिए उसके विध्यार्थियों की शिक्षा हेतु मेहनत नहीं करना, उसके पद के महत्व को बेकार कर देता है।
कोई भी अध्यापक यदि अपने पेशे ( Job ) के प्रति गैर जिम्मेदारी दिखाता है, तो इससे वह अपने अध्यापक पद के सम्मान को ही खोता है।
और इस तरह से विध्यार्थियों के प्रति बुरा आचरण करने वाले गुरुओं ( अध्यापकों ) को, समाज अपने तरीके से निपटता है।
हर शिक्षक वही फसल काटता है,
जिसका बीज वो खुद बोता है।
हमारी भूलों को अब हम छोड़ चलें,
आओ गुरु पद पाने की ओर चलें ।।
अर्थ : हर अध्यापक को अपने जीवन में उसकी तरह का फल मिलता है, जिस तरह के कर्म वो खुद करता है।
अतः अब हमारी उन सभी अध्यापकों से यही मनोकामना है कि उन्होंने अपने जीवन में जो भी गलती की है उसे अब वह भूल जायें, और अब एक अच्छे अध्यापक की तरह गुरु के पद का सम्मान करें।
👉 Kuchh Punya Honge Poorv Janam Ke,
Jisse Maanush Tan Paya Hai .
Maanush Tan Paya Jo Paya Humne,
Guru Ka Ohda Bhi Paya Hai .
Kisi Ne Jiya Shaan Se Isko,
Kisi Ne Bekar Gavaya Hai .
Guruji Se Hum Shikshak Kahalaye,
Fir Adhyapak Par Aaye .
Itne Par Bhi Hum Nahi Ruk Paye,
Vidhyarthi Mitra Naam Dharaye .
Vidhyarthi Mitron Ki Upaj Se Hum,
Fir Prabodhak Ban Paaye .
Abhi Chakkar Poora Kahan Huaa,
Ab Niji Karan Ka Saaya Hai .
Kisi Shikshak Ne To Maan Badhaya,
Kisi Ne Rasatal Me Pahuchaya Hai .
Balko Ke Liye Mehanat Nahi Karna,
Garima Ko Dhoomil Karta Hai .
Apne Peshe Ke Prati Gair Jimmedari Se,
Shikshak Apna Gaurav Khota Hai .
Kadachar Karne Walo Guruon Ko,
Samaj Apne Dhung Se Dhota Hai .
Har Shikshak Wahi Fasal Kaatta Hai,
Jiska Beej Wo Khud Bota Hai .
Hamari Bhoolo Ko Ab Hum Chhod Chale,
Aao Guru Pad Paane Ki Or Chale .... 👈
हमें आशा है कि आपको ऊपर दी गयी कविता को पढ़कर अच्छा लगा होगा तथा आपको इस Post के माध्यम से समझ में आ गया होगा कि समाज में बुरे अध्यापक किस तरह से विध्यार्थियों पर अत्याचार करते रहते हैं। अतः हमें ऐसे अध्यापकों के अत्याचार से विध्यार्थियों को बचाना चाहिए तथा उन अध्यापकों को कढ़ी से कढ़ी सजा दिलवानी चाहिए।