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Krishna janmashtami पर एक प्यारी सी कविता

Krishna Janmashtami  पर हिंदी कविता

बिरज में आज खेले नन्दलाल - खुश हैं, दुनिया हैरान है, नगरी चमकीली है
क्योंकि आज हमसे मिलने नन्दलाल आये हैं। 
नन्द के प्यारे नंदलाल, मुरली बजाते - कान्हा, आज जन्माष्टमी की खुशी मनाने के लिए हमारे यहाँ भी आओ।

अर्थ :- कवी श्री कृष्ण जन्माष्टमी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि आज जन्माष्टमी के दिन पूरी दुनिया बड़ी खुश है और आज यह वृन्दावन नगरी इतनी सजी है कि जिसे देखकर ऐसा लग रहा है जैसे मानों की अभी भगवान श्री कृष्ण ने इस धरती पर अवतार लिया हो। आगे कवी श्री कृष्ण को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि है नन्द बाबा के प्यारे बेटे-कान्हा आप आज इस अवसर पर मुरली बजाते हुए हमारे साथ जन्माष्टमी मनाने के लिए आओ और सभी भक्तों की खुशियों को दुगुना कर दो।  

है कान्हा ! यहाँ आकर लट पट यमुना किनारे, गोपियों के संगीत से भरा वृंदावन धाम देखो।
जहाँ नाचते भाँवरिया झूम उठे, गोपियाँ राधा के साथ लगी रास रचाने।

अर्थ:- आगे कवी कृष्ण जी से कहते हैं कि है कान्हा ! आप एक बार यहाँ यमुना के किनारे वाला गोपियों और भक्ति से भरा संगीत सुनकर तो देखो। क्योंकि यहाँ के वातावरण को देखकर तो भँवरे भी नाचने गाने लग गये हैं और यहाँ की सारी लड़कियाँ, गोपियाँ बनकर के राधा जी के साथ रास रचाने लग गयी है।  

शानदार बाँसुरी की मधुर धुन और कान्हा की मधुर ध्वनि हर किसी को करे मोहित। सभी की मति गोपियों के संग उड़ती चली जाये, है कान्हा अब तो आओ।
अर्थ :- आगे कवी कृष्ण जी के बारे में सभी भक्तों को बताते हुए कहते हैं कि कान्हा की बाँसुरी की मधुर धुन और उनकी मिठास भरी वाणी इतनी प्रिय लगती है कि वह हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। और सभी भक्त गोपियों की तरह आज भी यही आस लगाये हुए हैं कि आज तो कान्हा उनसे मिलने अवश्य आयेंगे, तो कान्हा आज तो आप उन सभी भक्तों का मान रख लो ओर अब तो उन से मिलने के लिए आ जाओ।

फिर कान्हा माखन चुराने आया, मिश्री की मिठास और माखन का स्वाद लेकर श्याम और राधा ने जों ही रास रचाया। गोपी संग कान्हा बड़े प्यार से मुरली माधुर बजाते हुए आते हैं, और लगते हैं रास रचाने। अर्थ :- कुछ समय बीत जाने के बाद कवि कहते हैं कि अब कान्हा हमारे बीच माखन चुराने के लिए आ गए हैं और अब वह राधा जी के साथ मिश्री और माखन खाकर रास रचाएंगे। आगे कान्हा गोपियों सहित बड़े ही प्यार से मुरली बजाते हुए आते हैं और उनके संग रास रचाने लगते हैं।

नंदलाल गोपियों के साथ रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर-खेलते हैं, राधा के साथ लीला अनमोल। गोपियाँ भी मुरली की मधुर धुन सुनकर मनोरम खेलें नन्दलाल के संग। अर्थ :- आगे कवि बताते हैं कि नन्दलाल गोपियों और राधा जी के साथ रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर बड़ी ही अनमोल लीला रचते हैं जिसे देखकर वह सभी गोपियाँ मुरली की मधुर धुन को सुनते हुए कान्हा के साथ उस खेल को खेलने में लग जाती हैं।

देखो कान्हा, माखन चोर छलकते पाँव दबे माखन चोरी करने आया, जिन्हें देख गोपियों
का क्रोधपूर्ण भर आया। राधा चिल्लाती हुई बोली, माखन चोर को अब तो सजा मिलेगी सखीन। अर्थ :- आगे कवि कान्हा की याद में खोते हुए हमें बताते हैं कि अब कान्हा, दबे पाँव नन्हे-नन्हे पैरों से चलते हुए माखन चुराने के लिए आ गए हैं जिन्हें देखकर अब गोपियाँ भी क्रोध से भर गई हैं, आगे राधा जी सभी से चिल्लाती हुई बोली कि अब तो इस माखन चोर को सजा मिलेगी।

Krishna janmashtami पर एक प्यारी सी कविता
Krishna Janmashtami पर एक प्यारी सी कविता 

राधा के साथ वृंदावन की नगरी में कान्हा की रासलीला की चर्चा रंगी हुई हैं, गोपियों के साथ लीला अनमोल। वृंदावन की नगरी किशोर नंदलाल कान्हा जी के संग होवे पवित्र, नन्द के आनंद भयो ! जय कन्हैया लाल की, मिश्री के ऐसे मीठे बोल। अब लगी वृंदावन की नारी, गोपियों के मन में रंग भरने। अर्थ :- आगे कवि बताते हैं कि वृन्दावन नगरी में कान्हा की रासलीला की बड़ी चर्चा है और कहा जाता है कि यहाँ भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं गोपियों के साथ रासलीला रचाई थी। जिसके कारण आज भी यह वृंदावन नगरी इतनी पवित्र मानी जाती है। और यहाँ आज भी जन्माष्टमी पर नन्द के आनंद भयो ! जय कन्हैया लाल की ऐसे बोल बोले जाते हैं, जो कि यहाँ के प्रत्येक पुरुष, स्त्रीयों और बच्चों द्वारा बोले जाते हैं।

Note - हम प्रत्येक वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को विशेष रूप से मनाते हैं। वृंदावन की यह लीला है बड़ी अद्भुत, क्योंकि गोपियों के साथ यहाँ जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है।

वृंदावन की झांकी में माखन है, मिश्री है, नंदलाल खेलते हैं, गोपियाँ खिलाती हैं।
यह अद्भुत झांकी, राधा रसिक रंगीन कृष्णा जी से भरी हुई है।

अर्थ :- आगे कवि कहते हैं कि वृन्दावन में इस दिन ऐसी झाँकियाँ तैयार की जाती है जिनमें कान्हा खेलते हैं और गोपियाँ उन्हें खिलाती हैं तथा उन्हें माखन भी खिलाती हैं। यह सभी अद्भुत झाँकियाँ राधा और भगवान कृष्ण के अटूट प्रेम और विश्वास से भरी होती हैं। 

वृंदावन की रासलीला में गोपियों के साथ नंदलाल मधुर रासलीला खेलते हैं।
लीला अनमोल करने, वृंदावन के किशोर कान्हा जी, राधा के साथ ब्रज की नगरी में आये हैं धूम मचाने।

अर्थ :- इन झाँकियों में श्री कृष्ण वृन्दावन की गोपियों के साथ मधुर रासलीला करते हुए नजर आते हैं और जिन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे मानो कि कान्हा स्वयं अभी वृन्दावन की इन गलियों राधा जी के साथ रासलीला करने आ गए हों।   

जय श्रीकृष्णा ! कान्हा खेलते गोपियों के साथ, रचावे रास।
जय कृष्णा लाल, मिश्री के मिठे बोल, बोले सभी कान्हा लीला अनमोल।

अर्थ :- वृंदावन में सभी भक्त जय श्रीकृष्णा ! बोलकर गोपियाँ बनी स्त्रीयों के साथ नृत्य करते हैं और सभी जय हो कृष्ण कन्हैया लाल की ! और कान्हा की लीला अपरम पार है ऐसे वचन बोलने लग जाते हैं।    

रास करते मोहिनी मूरत कान्हा की देखे गोपीयाँ अपनी लीला में।
नंदलाल कान्हा जीवन भर रहे हैं, उन सभी के साथ उनका रंग हर जगह रंगीला है।
रासरंगीला करके श्याम ने समस्त गोपियों को करा प्रसन्न।
आगे ब्रज की नगरी में, कान्हा राधा के संग रासरासिक रंगीला खेल खेलें।

अर्थ :- नृत्य करती हुई गोपियों को भी उस समय ऐसा लगता है जैसे मानों कि उस समय कान्हा स्वयं उनके साथ नृत्य कर रहे हों और उनके जीवन को खुशियों से भर रहें हों। तथा उन्हें ऐसा लगता है जैसे श्याम ने उनके साथ रासलीला करके उन्हें प्रसन्न कर दिया हो जैसा कि पहले उन्होंने राधा जी के साथ बृज की गलियों में रासलीला रच के लिया था। 

कान्हा को गोपियों ने मधुसूदन मोहिनी रूप में देखा और हुई सभी गोपियाँ कान्हा की दीवानी।
जिसके चलते श्रीकृष्ण ने मधुसूदन की तरह आकर गोपियों के साथ मधुर रासलीला खेली।

अर्थ :- रासलीला करते-करते कुछ समय बाद उन गोपियों को ऐसा लगता है जैसे उन्होंने अभी-अभी कान्हा को मोहिनी रूप में देख लिया हों और अब वह सभी गोपियाँ उनकी दीवानी हो गई हों जैसा कि उन्होंने पहले द्वापर युग में मधुसूधन वन में गोपियों के साथ खेला था।  

कान्हा का आधार वृंदावन ! मधुर धाम विराजे, रासरंगीला श्याम सलोना।
जब वे गोपियों के साथ बंसी बजावे, लगे सभी होने सम्मोहित।  

अर्थ :-  अंतिम पंक्तियों में कवी हमें बताते हैं कि कान्हा वृन्दावन धाम में ही विराजते हैं और वह अब उनके जीवन का एक आधार है जहाँ पर आज भी वह गोपियों के साथ रास रचाते हुए और सभी को बाँसुरी बजाकर सम्मोहित करते हुए नजर आते हैं।   

कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव

आज सभी कृष्ण जन्माष्टमी की खुशियाँ मनाएँ, बाँसुरी की मिठी ध्वनि सुनकरऔर गाँवे

नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की,

जय कन्हैया लाल की, जय हो गोपाल की।

निष्कर्ष (Conclusion)

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी सभी हिन्दुओं के लिए एक ख़ास और प्रमुख त्योहार है। क्योंकि यही वह दिन है जिस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन श्री कृष्ण द्वारा जो लीला द्वापर युग में कि गयी थी वह लीला अब उनके भक्तों द्वारा इस दिन भली भाँति देखने को मिलती है जिन्हें देख सभी भक्तों का मन खुशियों से भर जाता है। तथा यह त्योहार भक्तों को भगवान के प्रति श्रद्धा और विश्वास की शिक्षा देता है।  

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