आज की इस कविता
Lie-झूठ बोलने वाले लोगों पर एक कविता में कवि
उन लोगों के बारे में बताना चाहते हैं जो
झूठी प्रशंसा या झूठी शान के साथ जीते हैं तथा बढ़ी-बढ़ी बातें कर व्यर्थ ही लोगों को पागल बनाने में लगे रहते हैं। कभी-कभी तो ऐसे
झूठे लोग झूठ बोल-बोलकर दूसरे व्यक्तियों के घरों में भी लड़ाइयाँ करवा देते हैं तो आइये इस मजेदार Blog को पढ़कर जानते हैं कि झूठी शान में जीने वाले या झूठ बोलने वाले व्यक्तियों को अपनी शान को बनाए रखने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है।
छोटो मूंडो बातां बड़ी,
ज्ञानी बंण बांटे ज्ञान।
मन म आवे ज्यो बके,
हरदा मां ई अज्ञान।
सांच बोलबा का सौगन,
मीठा बोलां को काळ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि संसार में ऐसे-ऐसे लोग भी भरे पड़े हैं जिनके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा। जो काम छोटा करते हैं, और खुद को एक बहुत बढ़ा ज्ञानी व विद्वान समझकर व्यर्थ ही दूसरों को ज्ञान बाँटने में लगे रहते हैं।
ऐसे व्यक्तियों के मन में जो भी बात आ जाती है वही दूसरों से वह बोल देते हैं फिर चाहे वो बात झूँठी हो या सच इससे उनको कोई फरक नहीं पड़ता, क्योंकि ऐसे झूठ बोलने वाले व्यक्तियों के हृदय में तो बिना ज्ञान की ही बातें भरी होती है तो फिर कहाँ से वो सच बोल पायेंगे।
ऐसे झूठ बोलने वाले व्यक्ति कभी भी सच नहीं बोलते, सच बोलने के तो जैसे मानो उन्होंने सौगन्द ( कसम ) ले रखे हों, और ऐसे व्यक्तियों के मुँह से मीठे वचन निकल जाये इसके बारे में तो आप सोंचो ही मत।
दन भर थारी म्हारी करे,
फेंकबा म कांईं नंगाळ।
बना बोल्यां आवे आफरो,
बोल यांका अपरमांण।
सात घर नतकै नाप्यां सरे,
दूजां क घर खींचतांण।
अर्थ : कवि कहते हैं कि झूँठी शान में जीने वाले व्यक्ति तथा झूँठ बोलने वाले व्यक्ति दिन भर एक-दूसरे की बुराइयाँ करने में लगे रहते हैं, भला बढ़े-बढ़े झूठ फेंकने में उनको किस बात की शरम।
दूसरी पंक्ति में कवि कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति बिना बोले भी नहीं रह सकते क्योंकि यदि वह थोड़ी देर के लिए भी मोन धारण कर लेते हैं तो उन्हें घुटन सी महसूस होने लग जाती है, लेकिन फिर यह बातें भी तो बिना प्रमाण ( झूँठी ) की करते हैं जिन्हें कोई सुनना भी नहीं चाहता।
ऐसे व्यक्ति प्रतिदिन सात घरों में घूमते हैं, और दूसरे के घरों में जा-जाकर उन्हें आपस में लड़ाने का काम करते रहते हैं।
शकुनि की नांईं ये बहकावे,
मंथरा क नांईं भरे कान।
दूजां का घर बरबाद कर दे,
जद मले मोखळो आराम।
बड़ी चतराई सूं ये मैले बत्ती,
बचन यांका जैहर समान।
अर्थ : कवि कहते हैं कि झूँठी प्रशंसा करने वाले लोग, व्यक्तियों को शकुनि बनकर इस तरह से बहका देते हैं कि फिर उन्हें उन लोगों की कही हुयी बात के अतिरिक्त ( अलावा ) ना तो कुछ सुझता है और ना ही कुछ दिखाई देता है, और किसी को किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ भड़काना हो, तो यह मंथरा की तरह बनकर के उसके कान भरने ( प्रतिद्वन्दी के खिलाफ भड़काने ) में लग जाते हैं।
ऐसे व्यक्तियों को तभी जाकर के आराम मिलता है जब वह दूसरे व्यक्तियों का घर, परिवार पूरी तरह से बर्बाद कर देते हैं क्योंकि इन्हें तो इस तरह के कार्य करने में ही सच्चा आनन्द मिलता है।
अंतिम पंक्ति में कवि कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति बड़ी ही चतुराई के साथ ऐसा झूँठ बोलते हैं कि जिन्हें हम आसानी से पकड़ भी नहीं पाते, फिर ऐसे में हमें ऐसे व्यक्तियों की बातें मानो जहर के समान लगने लग जाती है।
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Lie-झूठ बोलने वाले लोगों पर एक कविता |
खरंगेट्या की नांईं रंग बदले,
कस्यां बस म करां जुबान।
सांप की नांईं ये फंण फैलावे,
छोटा बड़ां को कौने भान।
मुजरिम जद हाकम बंण बैठे,
तो न्याय नीचे पड़े धड़ाम।
अर्थ : कवि कहते हैं कि झूँठ बोलने वाले लोगों की यदि किसी बात का पता हमें चल जाता है और फिर उस बात की सच्चाई हम उन्हें बता देते हैं तो फिर वह व्यक्ति गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं अर्थात अपनी बात से मुकर ( पलट ) जाते हैं कि उन्होंने तो ऐसा कुछ कहा ही नहीं, अब आप ही बताओ कि ऐसे में झूँठ बोलने वाले लोगों की जुबान को वश में कैसे किया जाये।
ऐसे व्यक्ति कभी-कभी तो सांप की तरह फन फैला लेते हैं अर्थात अपनी बात को सही साबित करने के लिए वह किसी से भी भीड़ जाते हैं, फिर वह यह भी नहीं सोचते कि जिसके साथ वह इतनी बहस बाजी कर रहे हैं वह व्यक्ति उनसे उम्र में छोटा है या बड़ा।
तब अंतिम पंक्ति में कवि कहते हैं कि जब झूँठ बोलने वाला व्यक्ति ही न्यायाधीश बनकर के सच और झूँठ का फैसला लेने लग जाये, फिर ऐसे में न्याय को तो धड़ाम से गिरकर नीचे ही आना होता है।
घंणा मीठा बोले फैहली तोले,
कम बोलर चलावे काम।
अहम अभिमान सूं सदा दूरा,
छोटां को ज्यो राखे मान।
दुनियादारी सूं कांईं लैंणों दैंणों,
सदा सुमिरें हरि को नाम।
खुद जीवे औरां न भी जीबा दे,
अस्या मनख संत सुजान ।।
अर्थ : हमें संसार में किस तरह के व्यक्ति बनकर के जीना चाहिए इसके बारे में बताते हुए कवि कहते हैं कि हमें हमेशा मधुर या मीठे वचन बोलने चाहिए तथा बोलने से पहले एक बार सोंच लेना चाहिए कि हम क्या कहने जा रहे हैं, और जहाँ तक हो सके हमें कम ही बोलना चाहिए क्योंकि समाज ज्यादा बोलने वाले व्यक्तियों से तो वैसे भी दूर रहना चाहता है।
हमें किसी भी तरह के घमंड को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए, जहाँ तक हो सके इससे दूर ही रहना चाहिए और गरीब तथा उम्र में छोटे व्यक्तियों को भी हमेशा सम्मान देना चाहिए व उनकी इच्छा का मान रखना चाहिए।
हमें दुनियादारी की व्यर्थ की बातों से कोई लेना-देना नहीं रखना चाहिए तथा हमेशा हरि अर्थात भगवान के नाम का जाप करते रहना चाहिए।
ज्ञानी व विद्वान कहकर गये हैं कि हमें कभी भी दूसरों का बुरा नहीं सोंचना चाहिए, हमें खुद भी सुखी जीवन जीना चाहिए तथा दूसरों को भी जीने देना चाहिए।
👀 Chhoto Moondo Baataan Badi,
Gyani Ban Baante Gyan .
Man Me Aave Jyo Bake,
Harda Ma Ee Agyan .
Saanch Bolba Ka Sougan,
Meetha Bola Ko Kaal .
Dan Bhar Thari Mhari Kare,
Fekba Me Kaai Nangaal .
Bana Bolyan Aave Aafro,
Bol Yaanka Aparman .
Saat Ghar Natkai Napya Sare,
Dooja Ke Ghar Kheechtan .
Shakuni Ki Naai Ye Bahakave,
Manthra Ke Naai Bhare Kaan .
Dooja Ka Ghar Barbad Kar De,
Jad Male Mokhlo Aaram .
Badi Chatrai Soo Ye Maile Batti,
Bachan Yaanka Jaihar Saman .
Khangetya Ki Naai Rang Badle,
Kasyaa Bas Me Kara Juban .
Saanp Ki Naai Ye Fun Failave,
Chhota Bada Ko Koune Bhaan .
Mujrim Jad Haakam Ban Baithe,
To Nyay Neeche Pade Dhadam .
Ghana Meetha Bole Faihali Tole,
Kam Bolar Chalave Kaam .
Aham Abhiman Soo Sada Doora,
Chhota Ko Jyo Raakhe Maan .
Duniyadari Soo Kaai Laino Daino,
Sada Sumire Hari Ka Naam .
Khud Jeeve Auraan Ne Bhi Jeeba De,
Asyaa Manakh Sant Sujaan ..
☝ हमें आशा है कि आपको इस Post को पढ़कर के अच्छा लगा होगा। अतः इस Post से यही निष्कर्ष निकलता है कि हर इंसान को अपनी तथा दूसरे की झूँठी प्रशंसा करने व झूँठ बोलने के बजाय एक सज्जन, सच्चा व ईमानदार इंसान बनकर के जीना चाहिए तथा अपने जीवन में बुरे कार्य नहीं करने चाहिए और इसी के साथ यदि दूसरे व्यक्तियों के साथ बात करें या उन्हें किसी तरह की कोई सलाह दें, तो अच्छे कार्यों की दें ताकि दूसरे व्यक्ति भी आपसे कुछ सीख सके। ☝